राजा सुहेलदेव की जयंती के मौके पर गीतकार वीरेंद्र ने गीत के बोल के जरिए उनके बलिदान की गाथा सुनाई है. उन्होंने महाराजा सुहेलदेव की पराक्रम गाथा और बलिदान पर एक बेहद ही शानदार गीत लिखा है. इसके हर एक शब्द में सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी लिखी गई है. इस गीत को आवाज दिया है बॉलीवुड के गायक दिव्य कुमार ने और संगीत है राजेश सोनी का. वीरेंद्र सिंह द्वारा लिखा गीत जिसने भी पढ़ा और सुना वो सभी रोमांचित हो उठे. बता दें कि कि वत्स के बेहतरीन गीत पर ही गणतंत्र दिवस परेड में यूपी की झांकी को सर्वाधिक नंबर मिले थे.
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मालूम हो कि इससे पहले वीरेंद्र वत्स द्वारा योगी सरकार के ढाई एवं तीन साल का कार्यकाल पूरा होने, गंगा यात्रा, उत्तर प्रदेश दिवस एवं चौरीचौरा शताब्दी समारोह पर लिखे गीतों को भी लोगों ने खूब सराहा गया . वत्स मूलरूप से सुल्तानपुर के हैं और लखनऊ के रहने वाले हैं.
महाराजा सुहेलदेव पर लिखा गया पूरा गीत इस प्रकार है-
श्रावस्ती की भूमि पर जन्मे दिव्य नरेश. भारत के रक्षक बने, बदल दिया परिवेश
गजनी की बर्बर सेना टूट पड़े बलिदानी.सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी
गजनी से बहराइच तक आ पहुंचे क्रूर लूटेरे. उनके लिए सुहलेदेव ने रचे मौत के घेरे
सभी दरिंदे फंसे व्यूह में मांगे मिला न पानी
सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी.
बढ़े कदम वीरों के धरती डगमग डोल रही थी
हैवानों का नाम मिटा दो जनता बोल रही थी
कटे शीश तो लाल हो गई पुण्य धरा यह धानी
सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी
कौन थे राजा सुहेलदेव?
इतिहास के जानकारों ने बताया कि वाकया करीब 1000 साल पुराना है. इतिहास को यू टर्न देने वाली यह घटना बहराइच में हुई थी. महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के शासक थे. सुहेलदेव ने महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद को मारा था. राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं. जिनका पूर्वांचल के कई जिलों में खासा प्रभाव है. आपको बता दें कि 15 जून 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के चित्तौरा झील के तट पर युद्ध हुआ था. इस युद्ध में महाराजा सुहेलदेव की सेना ने सालार मसूद की सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला. राजा सुहेलदेव की तलवार के एक ही वार ने मसूद का काम भी तमाम कर दिया. युद्ध की भयंकरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसमें मसूद की पूरी सेना का सफाया हो गया. एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे. वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे.
बता दें कि बहराइच और उसके आसपास के क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से काफी महत्वपूर्ण रहे हैं. पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक बहराइच को ब्रह्मा ने बसाया था. यहां सप्त ऋषि मंडल का सम्मेलन भी कराया गया था. चित्तौरा झील के तट पर त्रेता युग के मिथिला नरेश महाराजा जनक के गुरु अष्टावक्र ने वहां तपस्या की थी.
Source : News Nation Bureau