सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मीडिया में हाथरस पीड़ित की फोटो छापने पर सवाल उठाने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि हम कानून पर कानून नहीं बना सकते है और याचिकाकर्ता को केंद्र के समक्ष एक प्रतिनिधित्व दायर करने को कहा है. याचिका में यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई में देरी का मुद्दा भी उठाया गया था. इस याचिका पर सुनवाई के लिए मामला न्यायाधीया एन वी रमाना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था.
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पीठ ने कहा कि इन मुद्दों का कानून से कोई लेना-देना नहीं है. इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस भी शामिल है. पीठ ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है. इसके लिए पर्याप्त कानून है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी घटनाएं होती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि हम इसके लिए कानून पर कानून नहीं बना सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सरकार का प्रतिनिधित्व कर सकता है. 27 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि हाथरस मामले की सीबीआई जांच इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में की जाए और सीआरपीएफ पीड़ित परिवार व मामले के गवाहों को सुरक्षा प्रदान करेगी. कोर्ट ने अक्टूबर में इस घटना पर चिंता जताते हुए फैसला सुनाया था.
बता दें कि 19 सितंबर को हाथरस में चार आरोपियों ने 19 वर्षीय दलित युवती के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया था. इसके बाद इलाज के दौरान 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कथित तौर पर उसके माता-पिता की सहमति के बिना रात में उसका दाह संस्कार कर दिया था, जिसके बाद देश में इस मामले को लेकर काफी आक्रोश फैल गया था.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
Source : News Nation Bureau