सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को एक बार फिर झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों का सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद करने वाले फैसले के खिलाफ दाखिल शिक्षा मित्रों की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट पुनर्विचार याचिके 30 जनवरी 2018 को खारिज कर चुका है.
यह भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश: अनुच्छेद 370 के समर्थन में धरने से पहले संदीप पांडेय नजरबंद
यह मामला उत्तर प्रदेश में 172000 शिक्षा मित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर करने का है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, एसए बोबडे, एनवी रमना और यूयू ललित की पीठ ने गत 6 अगस्त को उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मित्र संघ की ओर से दाखिल क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया था.
यह भी पढ़ें- अखिल भारतीय संत समिति की बैठक के बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर को लेकर दिया ये बड़ा बयान
फैसला वेबसाइट पर बाद में उपलब्ध हो पाया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उन्होंने याचिका और उसके साथ दाखिल दस्तावेजों पर गौर किया है. जिसमें पाया गया कि यह मामला क्यूरेटिव याचिका पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मानकों में नहीं आता है. इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है.
यह भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश: जिला महिला अस्पताल में संक्रमण से 32 बच्चों की मौत
पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद शिक्षा मित्रों ने क्यूरेटिव याचिकाएं दाखिल की थी. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मित्र संघ के वकील गौरय दाव का कहना है कि कोर्ट का जो भी निर्णय होगा हम उसे मानेंगे. लेकिन शिक्षामित्रों के हित में राज्य सरकार से गुहाल जारी रखी जाएगी.
यह भी पढ़ें- बकरीद और सावन का आखिरी सोमवार एक साथ, UP में पुलिस हाई अलर्ट पर
25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों में सहायक शिक्षक के तौर पर के समायोजन को रद्द करने के फैसले को सही करार दिया था. हालांकि शिक्षामित्रों को राहत देते हुए कोर्ट ने कहा था कि अगर शिक्षामित्र जरूरी योग्यता हासिल कर लेते हैं तो उन्हें लगातार दो बार के भर्ती विज्ञापनों में मौका मिलेगा. इसके साथ-साथ उन्हें आयु में छूट मिलेगी और अनुभव को प्राथमिकता दी जाएगी.
यह भी पढ़ें- बच्चा चोरी के शक में एक महिला को पेड़ से बांध कर पीटा
कोर्ट ने कहा था कि जब तक उन्हें ये मौका मिलता है तब कर उत्तर प्रदेश सरकार समायोजन से पहले की शर्तों के आधार पर शिक्षामित्र के रूप में काम करने दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से सहमति जताते हुए कहा था कि कानून के मुताबिक नियुक्ति के लिए 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से न्यूनतम योग्यता की आवश्यक्ता है. न्यूनतम योग्यता के बिना किसी की भी नियुक्ति की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
ये है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 मई 1999 को एक आदेश जारी किया था. जिसके आधार पर शिक्षा मित्रों की नियुक्ति हुई थी. सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षक और छात्रों का अनुपात ठीक करने और सभी को समान प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से हुई थी. शिक्षा मित्रों की भर्तियां शिक्षक से कम योग्यता पर और कम वेतन पर हुई थी. नियुक्ति संविदा आधारित थी.
यह भी पढ़ें- पांच मुख्यमंत्रियों के साथ रूस पहुंचे सीएम योगी, Photo's में देखें उनकी यात्रा
1 जुलाई 2001 को सरकार ने एक और आदेश जारी करके इस योजना को और विस्तृत रूप दिया. जून 2013 में 172000 शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करने का निर्णय लिया गया. सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने समायोजन को रद कर दिया. जिसके खिलाफ शिक्षा मित्र सुप्रीम कोर्ट आए थे.
Source : News Nation Bureau