उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में देश का सबसे पुराना वैज्ञानिक संस्थान सर्वे ऑफ इंडिया पहली बार गांवों का ड्रोन की मदद से डिजिटल मानचित्र बना रहा है. डिजिटल मानचित्र के जरिये राज्य के करीब 82 हजार गांवों में ग्रामीण आवासीय अधिकार अभिलेख (घरौनी) तैयार होगा. घरौनी के माध्यम से हर गांव और गांव में बने हर घर का अभिलेख ग्रामीण प्राप्त कर सकेंगे. बुंदेलखंड (Bundelkhand) के सातों जिलों में ड्रोन की मदद से डिजिटल मानचित्र (Digital Map) तैयार करने के लिए सर्वे का कार्य किया जा रहा है. राजस्व परिषद की देखरेख में हो रहे इस कार्य को अप्रैल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
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राजस्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई स्वामित्व योजना के तहत बुंदेलखंड (Bundelkhand) के सभी सातों जिलों के गांवों में करीब 45 ड्रोन के जरिये सर्वे का कार्य किया जा रहा है. सर्वे में ड्रोन और पटवारी सर्वे के बाद जो नक्शा (Map) तैयार होगा उसमें गांव के मकान और खसरा नंबर के साथ मालिक का नाम भी लिखा जाएगा. इस नक्शे के आधार पर ग्रामीण आवासीय अधिकार अभिलेख (घरौनी) तैयार किया जायेगा. घरौनी को हर ग्रामीण प्राप्त कर सकेगा.
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अभी गांवों में बने आवासों का कोई पुख्ता रिकार्ड नहीं था. राजस्व विभाग के पास खतौनी में कृषि भूमि का ब्यौरा तो था लेकिन गांवों में बने मकानों का नक्शा और मकान नंबर नहीं था. जिसका संज्ञान लेते हुए बीते साल केंद्र सरकार ने स्वामित्व योजना के तहत आधार पर ग्रामीण आवासीय अधिकार अभिलेख (घरौनी) तैयार करने का फैसला लिया. केंद्र की इस योजना के तहत राज्य में 575 गांवों में ड्रोन से सर्वे करके करीब आठ हजार गांवों की घरौनी तैयार कर ग्रामीणों को दी गई है.
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अभी बुंदेलखंड में ड्रोन (Drone) से सर्वे (Survey) का कार्य तेजी से किया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि 24 अप्रैल के पहले बुंदेलखंड में सर्वे का कार्य पूरा करने का लक्ष्य है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों से ग्रामीणों को घरौनी वितरित कराने की योजना है. उसके बाद यूपी के अन्य जिलों के गांवों में सर्वे का कार्य किया जाएगा. राज्य के सभी 80 हजार गांवों में दो साल में ड्रोन से सर्वे करने ग्रामीण आवासीय अधिकार अभिलेख यानी घरौली ग्रामीणों को उपलब्ध कराने की योजना है.
झांसी के जिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने बताया कि घरौनी के माध्यम से गांवों की यूनिक आईडी बनती है. वहां के मकानों का श्रेणीकरण भी होगा. इससे विवाद कम होगा. खतौनी की तरह ही घरौनी होती है. इससे अवैध कब्जा कम होगा. इससे बहुत सारे लाभ होंगे. सारे रिकॉर्ड ऑनलाइन होंगे. झांसी में करीब 3200 घरौनी बांट चुके हैं.
Source : IANS