इण्डियन आयल कार्पोरेशन के मथुरा स्थित तेलशोधक कारखाने के कार्यकारी निदेशक अरविन्द कुमार ने ताजा जांच रपट के आधार पर शुक्रवार को दावा किया कि मथुरा रिफाइनरी से निकलने वाले सल्फर के उत्सर्जन से पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा है. कुमार ने यहां कहा कि जब-तब लगाए जाने वाले ऐसे आरोप सही नहीं है कि ताजमहल की संगमरमरी सतह पर मथुरा रिफाइनरी के किसी भी उत्सर्जन कस दुष्प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने शुक्रवार को संवाददाताओं से मुलाकात में कहा, ‘मथुरा रिफाइनरी ने पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित मानकों पर हमेशा पूरा नियंत्रण रखा है.
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इसीलिए पहले से ही कई बार यह सिद्ध किया जा चुका है कि ताजमहल को मथुरा रिफाइनरी से किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ है.’ रिफाइनरी के तकनीकि सेवाओं के मुख्य महाप्रबंधक एएस साहनी ने बताया, ‘इस बार रिफाइनरी के ‘शट डाउन’ के दौरान वायुमण्डल की स्थिति का अध्ययन करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की संस्तुति प्राप्त एजेंसी से निगरानी परीक्षण कराया गया तो वायुमण्डल में सल्फर की उपस्थिति वही पाई गई जो वर्ष 2018-19 के दौरान तेलशोधक कारखाने के परिचालन की स्थिति में पाई गई थी.’ उन्होंने बताया, ‘इससे यह स्पष्ट होता है कि इस समय रिफाइनरी से उत्सर्जित होने वाले सल्फर से स्थानीय वायुमण्डल पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ रहा है.
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जो यह भी सिद्ध करता है कि मथुरा रिफाइनरी से ताजमहल की सुंदरता पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.’ कार्यकारी निदेशक कुमार कहा, ‘रिफाइनरी पर्यावरण संबंधी सभी मानक पूरे करने में पूरी तरह से सक्षम है. क्योंकि, यहां इस मामले में उत्पादन के दौरान हर मामले में विश्व स्तरीय उच्च तकनीकि प्रयोग की जाती है तथा उत्सर्जन के नियंत्रण के लिए हर पल की निगरानी की जाती है. इसके लिए रिफाइनरी से लेकर आगरा तक चार स्थानों पर वायु प्रदूषण निगरानी के लिए चार स्थानों पर निगरानी संयंत्र स्थापित किए जाते हैं. इसके अलावा भी मासिक स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पैनल में शामिल संस्थान द्वारा सैम्पल लेकर जांच कराई जाती है.’
निदेशक ने कहा, ‘वर्ष 2005 में जब भारत स्टेज-2 लागू किया गया था, तब सल्फर उत्सर्जन मानक 500 पीपीएम था, 2010 में बीएस-3 के समय गैसोलिन में सल्फर उत्सर्जन सीमा 150 पीपीएम व वर्ष 2017 में बीएस-4 लागू होने के बाद यह सीमा 50 पीपीएम रह गई. रिफाइनरी ने हमेशा इन लक्ष्यों को पूरा किया और नई तकनीकि तथा अत्याधुनिक उपकरणों के माध्यम से सल्फर का उत्सर्जन हमेशा मानकों की सीमा के अंदर ही रखा.’
कुमार ने कहा, ‘इसके लिए हमने डेढ़ माह के ‘शट डाउन’ के दौरान डीजल में सल्फर की मात्रा को कम करने के लिए डीजल हाइड्रो डीसल्फराईजेशन यूनिट (डीएचडीएस) और पेट्रोल में नियंत्रण के लिए गैसोलिन हाइड्रो डीसल्फराईजेशन यूनिट (प्राइम-जी) में अपेक्षित सुधार किए.’ उन्होंने कहा कि इस परिवर्तन के साथ ही बीएस-6 मानक वाले वाहनों में यह ईंधन प्रयोग किए जाने पर सल्फर उत्सर्जन में कुल 80 प्रतिशत तक की कमी आएगी.