उत्तर प्रदेश में राज्यपाल बदलते ही एक बार फिर लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ बहाली का मुद्दा गरमा गया है. इसे लेकर छात्र संगठनों के अलावा अब शिक्षक संघ भी इसमें कूद पड़ा है. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) व शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रोफेसर डॉ. नीरज जैन ने कहा कि लविवि में छात्रसंघ चुनाव इसलिए नहीं हो रहे हैं, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन नहीं चाहता है कि यहां छात्र-राजनीति नर्सरी फले फूले. उन्हें डर है कि छात्रसंघ के लोग भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर बवाल कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पड़ोसी जिलों के विश्वविद्यालयों में हालांकि चुनाव में हो रहे हैं.
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डॉ. जैन ने कहा, 'छात्रसंघ लागू होने से समाज और राजनीति को नई दिशा मिलेगी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर राजभवन तक पत्र भेजकर इसे लागू करने की मांग उठाई जा रही है. हम भी इसका पूरी तरह से समर्थन कर रहे हैं. राज्यपाल राम नाईक ने जाते-जाते यहां पर चुनाव होने की बात कही थी, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन की मंशा शायद चुनाव कराने की नहीं है, इसी कारण वह कुछ भी नहीं बोल रहे हैं.'
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश मंत्री राहुल वाल्मीकि का कहना है, 'छात्रसंघ चुनाव को लेकर इस बार हम सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. जब लिंगदोह कमेटी के आधार पर चुनाव कराने हैं तो इतने दिनों से टाला क्यों जा रहा है.' उन्होंने कहा, 'विश्वविद्यालय में छात्र लोकतांत्रिक व्यवस्था के तरीके सीखते हैं. छात्रसंघ पर रोक लगाकर इसे खत्म करना गलत होगा. हम इसके लिए फिर से आवाज उठाएंगे और परिसर में छात्रसंघ बहाल करवा कर रहेंगे. इसके लिए पूरी रूपरेखा तैयार कर ली गई है.'
वहीं, छात्रसभा के प्रदेश सचिव सतीश शर्मा ने कहा कि पहले सपा सरकार पर छात्रसंघ चुनाव टालने का आरोप लगाया जाता रहा है. यह मामला पहले से कोर्ट में लंबित है, लेकिन इसकी पैरवी सरकार नहीं कर रही है. सरकार नहीं चाहती कि छात्रसंघ चुनाव बहाल हो, जबकि सरकार ने इसे अपने घोषणापत्र में बहाल करने की बात कही थी. छात्रसंघ छात्रों की दुश्वारियां उठाते हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन की मंशा इसे बहाल कराने की नहीं है, इसी वजह से वह इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.
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विश्वविद्यालय प्रशासन के कुछ अधिकारियों का मानना है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुशासन बनाए रखने के लिए छात्रसंघ चुनाव बंद कर दिया जाना चाहिए. चुनाव के बहाने विश्वविद्यालय परिसरों में राजनीतिक दलों का दखल बढ़ता है और पढ़ाई-लिखाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कुछ छात्र मगर अधिकारियों की बात से इत्तेफाक नहीं रखते. राजनीति विभाग के छात्र दिनेश वर्मा का कहना है कि यूनिवर्सिटी कैम्पस में सकारात्मकता और लोकतंत्र को रखना है तो चुनाव कराना बहुत जरूरी है. इससे छात्रों में राजनीति का कौशल जागृत होता है. उन्हें राजनीति का व्यावहारिक ज्ञान भी मिलेगा. एक आधारभूत नागरिक बोध के लिए अच्छे-बुरे में फर्क करने के लिए छात्रसंघ चुनाव जरूरी है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव को राजनीति की नर्सरी माना जाता था. यहां युवा राजनीति के दांवपेच सीखकर भविष्य की राजनीति में बड़े मुकाम पर पहुंचते हैं. इस नर्सरी से निकले तमाम ऐसे नौजवान नेता हैं, जो आगे राजनीति का वटवृक्ष बने. इनमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर समेत कई नाम हैं.
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लखनऊ विश्वविद्यालय को छात्र राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है. यहां उप्र ही नहीं, देशभर से नौजवान राजनीति का ककहरा सीखने आते रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में आखिरी बार साल 2005 में चुनाव हुए थे, उसके बाद 2006 में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू हो गईं. इस गाइडलाइन का छात्र संगठनों ने जमकर विरोध किया. आंदोलन तेज होने पर 250 छात्रों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसके विरोध में पूरे प्रदेश में छात्र उग्र आंदोलन पर उतर आए. इस विरोध के दौरान लविवि छात्रसंघ के महामंत्री विनोद त्रिपाठी की हत्या हो गई थी. साल 2007 में मायावती की सरकार बनी. इस सरकार ने छात्रसंघ चुनाव पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी.
समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अखिलेश यादव छात्रसंघ चुनावों की बहाली का वादा करके सरकार में आए. लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों में कुछ मुद्दों को मानने से छात्रों ने इनकार कर दिया, जिसमें आयु सीमा का मुद्दा भी था. साल 2012 में लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देकर उम्मीदवार हेमंत सिंह को चुनाव लड़ने से रोक दिया. हेमंत सिंह ने अदालत दरवाजा खटखटाया. इसके बाद छात्रसंघ चुनाव पर फिर से रोक लग गई.
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