अयोध्या का राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद देश की सर्वोच्च न्यायालय में फैसले का इंतजार कर रहा है. इस मामले पर सुनवाई पूरी हो चुकी है, अब बस इंतजार फैसला का हो रहा है. उम्मीद है कि 17 नवंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट इस विवाद को सुलझाते हुए अपना फैसला सुना देगा. यूं तो यह मामला दशकों से चला आ रहा है, लेकिन आजादी के बाद इसे लेकर सबसे बड़ा राम जन्मभूमि आंदोलन 29 साल पहले हुआ था. आज ही के दिन जहां एक ओर हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों पर गोलियां बरसाईं गई थीं, वहीं दूसरी ओर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के भाइयों ने इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा झंडा फहराया था.
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राम जन्मभूमि आंदोलन की बात जब भी आती है तो कोलकाता के कोठारी परिवार का नाम जरूर लिया जाता है. बताया जाता है कि 23 साल के राम कोठारी और 21 साल के शरद कोठारी 22 अक्टूबर की कोलकाता (तब कलकत्ता) से अयोध्या चले आए थे. दोनों करीब 200 किमी पैदल चलकर 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचे थे. क्योंकि अयोध्या की तरफ आने वाली ट्रेनों और बसों को बंद कर रखा था. कोठारी बंधु पहले टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए. आगे सड़क का रास्ता बंद होने की वजह से दोनों अयोध्या की तरफ पैदल निकले पड़े थे.
1990 में राम मंदिर के लिए आंदोलन को धार देने में कारसेवकों की बड़ी भूमिका रही थी. कारसेवक के अलावा हिंदू साधु-संतों ने अयोध्या कूच किया था. उन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अयोध्या में पहुंच चुकी थी. ऐसे में प्रशासन को अयोध्या में कर्फ्यू लगाना पड़ा. विवादित स्थल के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग की गई थी. लेकिन 30 अक्टबूर 1990 को अचानक कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई और बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए आगे बढ़ने लगी. तभी पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दीं थीं.
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जिस समय बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ, उस वक्त मुलायम सिंह यादव के हाथों में सत्ता थी. इस आंदोलन के दौरान उन्होंने निर्देश दिए थे कि मस्जिद को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़े जाने के निर्देश दिए गए थे. लेकिन बैरिकेडिंग टूटने के बाद कारसेवकों को रोक पाना पुलिस के लिए मुश्किल रहा. कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़े और तोड़ना शुरू कर दिया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में हुई फायरिंग में 5 कारसेवक मारे गए थे.
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बताया जाता है कि राम और शरद कोठारी के नेतृत्व में हनुमानगढ़ी में सैकड़ों कारसेवकों का जमावड़ा लगा था. पुलिस की चेतावनी और फायरिंग के बीच कोठारी भाईयों का जत्था लगातार आगे बढ़ रहा था. उन्होंने विवादित ढांचे के ऊपर चढ़कर भगवा ध्वज फहराने का फैसला किया था. कहा जाता है कि 30 अक्टूबर 1990 को बाबरी मस्जिद की गुंबद पर चढ़ने वाला पहला आदमी शरद कोठारी ही था. बाद में उसका भाई राम कोठारी गुबंद चढ़ा था. फिर दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया था. 'अयोध्या के चश्मदीद' किताब के मुताबिक, 30 अक्टूबर को गुंबद पर झंडा लहराने के बाद 2 नवंबर को राम और शरद कोठारी दोनों पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए. दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.
Source : डालचंद