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गोरखपुर की फिजाओं में आज भी गूंजती हैं शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग के साहस की कहानियां

देश की रक्षा के लिए अग्रिम पंक्ति में तैनात गोरखा बटालियन के सैनिक देश के लिए मर मिटने को तैयार रहते हैं. कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस का परिचय देने वाले शहीद गौतम गुरुंग ने जो मिसाल कायम की उसकी कहानी आज भी गोरखपुर में गूंजती है

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Mohit Sharma
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martyr Lieutenant Gautam Gurung

martyr Lieutenant Gautam Gurung ( Photo Credit : News Nation)

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देश की रक्षा के लिए अग्रिम पंक्ति में तैनात गोरखा बटालियन के सैनिक देश के लिए मर मिटने को तैयार रहते हैं. कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस का परिचय देने वाले शहीद गौतम गुरुंग ने जो मिसाल कायम की उसकी कहानी आज भी गोरखपुर में गूंजती है. 23 अगस्त 1973 को गौतम गुरुंग का जन्म देहरादून में हुआ था. शहीद गौतम गुरुंग के पिता रिटायर्ड ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग का कहना है की उनमें बचपन से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जूनून था. इनका परिवार मूलरूप से नेपाल का रहने वाला है लेकिन इनकी कई पीढ़ी करीब 100 साल से देहरादून में ही रहती है. गौतम ने एमबीए करने के बाद भी सेना में जाने का फैसला किया था. 3/4 गोरखा रायफल्स में कमीशन और पहली तैनाती जम्मू कश्मीर में मिली. उस समय गौतम के पिता गोरखपुर जीआरडी में तैनात थे. 4 अगस्त 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों से कारगिल में मुठभेड़ हो रहा था. तंगधार में युद्ध के दौरान दुश्मन की मिसाइल एक साथी शिव के बंकर में घुस गई. साथी को संकट में देख गौतम उस बंकर में जा घुसे और अपने दोस्तों को बचाने में जुट गए. इसी बीच एक दूसरी मिसाइल ले. गौतम गुरुंग की कमर में लगी. इस दौरान वीरता दिखाते हुए गौतम अपने 8 साथियों को तो बचा लिए लेकिन उनकी हालत को देखते हुए फौरन बेसकैंप लाया गया. डॉक्टर ने भारत माँ के इस वीर सपूत को बचाने की हर कोशिश की लेकिन अगले दिन सुबह वह चीरनिद्रा में सो गए. 26 साल की उम्र में ले.गौतम गुरुंग शहीद हो गए.

उनकी शहादत के बाद सरकार ने उनको सेना पदक से सम्मानित किया. जब शहीद का शव गोरखपुर लाया गया तो वह दिन रक्षाबंधन का था. शहीद की इकलौती बहन ने जब शहीद भाई की कलाई पर राखी बांधी तो उसके समेत उमड़ा सारा हुजूम दहाड़ मारकर रो पड़ा. शहादत से 1999 में गोरखपुर के अंदर पाकिस्तान के खिलाफ लोगों का आक्रोश इस कदर फूटा था कि पुलिस को भीड़ को हटाने के लिए बड़ा मोर्चा लेना पड़ा. उस समय गौतम के पिता पीएस गुरुंग भी सेना में ब्रिगेडियर थे. बेटे के पार्थिव शरीर को उन्होंने एक सैन्य अधिकारी की हैसियत से रिसीव किया तो पिता के रूप में आकर बेटे को मुखाग्नि दी रिटायर होने के बाद शहीद गौतम के पिता देहरादून स्थित पैतृक गांव चले गए लेकिन, हर साल वह गोरखपुर आते हैं और अपने बेटे को श्रद्धांजलि देते हैं.

शहीद के साथी और उनके परिवार के लोग हर राष्ट्रीय पर्व पर गोरखपुर आते हैं और उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. देश में मनाये जाने वाले हर राष्ट्रीय पर्व पर गौतम गुरंग तिराहे पर गोरखा रेजिमेंट के अधिकारी और सैनिक आकर शहीद को नमन करते हैं और आम लोग भी काफी संख्या में जुटते हैं. शहीद के साथियों का कहना है की गोरखा जवान हर क्षेत्र में आगे होता है और वह मौत से नहीं डरता. इसी निडरता के प्रतीक थे शहीद गौतम गुरुंग... भारत नेपाल मैत्री समाज के अध्यक्ष अनिल गुप्ता का कहना है कि वह लोग कहीं भी रहते हों लेकिन उनकी शहादत दिवस पर और दूसरे राष्ट्रीय पर्वों पर अपने साथी को श्रद्धांजलि देने जरुर गोरखपुर आते हैं.  
देश के लिए मर मिटने वाले लाखों सैनिकों का सबसे बड़ा अरमान यही होता है की वह देश के लिए शहादत पाए, इसी अरमान को सीने में लेकर लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग ने सेना ज्वाइन किया था और देश के लिए अपने आपको बलिदान कर दिया. आज उनकी शहादत पर जिस तरह गोरखपुर गर्व करता है उसे देश उनके पिता का सीना भी चौड़ा हो जाता है. शहीद के पिता पीएस गुरुंग को अपने बेटे को खोने का जितना गम है, उससे ज्यादा अभिमान इस बात का है कि उनका लाल देश के काम आया....

Source : Deepak Shrivastava

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