लॉकडाउन की बंदिशों के चलते जहां एक तरफ देश में हजारों लोगों ने अपनी शादी टाल दी तो वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर में इसी दौरान एक गरीब अनाथ लड़की की शादी चर्चा का विषय बनी हुई है. यह शादी किसी खास व्यक्ति की नहीं थी, बल्कि फुटपाथ पर भिखारियों के साथ बैठने वाली एक लड़की की थी. खाना बांटने वाले लड़के ने मांग भरकर उसे अपनी दुल्हन बना लिया. कानपुर की नीलम से शादी रचाते अनिल को शायद ही सपने में भी ये कभी एहसास होगा कि लॉकडाउन में वो फुटपाथ पर जिसे भिखारियों के साथ खाने की राहत बांट रहा है, वो एक दिन इस तरह उसे वरमाला पहनाएगा.
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नीलम के पिता नहीं हैं, मां पैरालेसिस से पीड़ित है. भाई-भाभी ने मारपीट कर घर से भगा दिया था. उसके पास गुजारा करने को कुछ नहीं था. इसीलिए ये लॉकडाउन के दौरान खाना लेने के लिए फुटपाथ पर भिखारियों के साथ खाने के लाइन में बैठती थी. अनिल अपने मालिक के साथ रोज सबको खाना देने आता था. इसी दौरान अनिल को जब नीलम की मजबूरियों का पता चला, तो वो नीलम से प्यार कर बैठा. फिर क्या था, भिखारियों की लाइन से निकलकर नीलम उसके सात जन्मों की हमसफर बन गई. नीलम को तो अभी तक अपनी शादी को किसी सपने से कम नहीं लग रही, तो अनिल अपनी शादी को लॉकडाउन की शादी का नाम दे रहा है.
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अनिल पेशे से ड्राइवर है, वो जब दिन में खाना बांटकर आता था तो नीलम की चर्चा अपने मालिक से करता था. उसके मालिक ने उसकी भावना समझ गए. उन्होंने उसे समझाया दिन में तो तुम उसे खाना दे आते हो, लेकिन रात में वो क्या खाएगी. फिर क्या था, तब से अनिल रात में खुद खाना बनाकर कई दिनों तक नीलम को देने जाने लगा. इसके बाद अनिल के मालिक ने उसके पिता को शादी के लिए राजी किया और वरमाला की मंजिल तक दोनों को पहुंचा दिया. भगवान बुद्ध के आश्रम में नीलम की बेजान दुनिया आबाद हो गई. इस शादी में सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए कई संभ्रांत लोगों ने शामिल होकर वर वधू को आशीर्वाद दिया.
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वैसे तो हर शादी जिंदगी का खूबसूरत अहसास लेकर आती है, लेकिन कभी कभी कोई शादी ऐसी पटकथा लेकर सामने आती है, जिससे यही लगता है कि शादियां, शायद जिंदगी को रचने वाले खुदा की फ़िल्म का ही एक मंचन है. साथ ही वो पहले से ये तय कर के रखता है कि किसको, किसके जन्मों का साथी बनाना है, कम से कम अनिल और नीलम की शादी की कहानी तो यही दर्शाती है.
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