संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) के घूरपुर इलाके में हुई एक अनोखी शादी इन दिनों लोगों के बीच खासी चर्चा का सबब बनी हुई है. ये शादी भी दूसरी आम शादियों की तरह ही हुई. मंडप सज़ाया गया. दूल्हा -दुल्हन तैयार किये गए. पंडित जी ने मंत्र पढ़े और अग्नि को साक्षी मानकर फ़ेरे भी कराये गए. इस शादी में भी और शादियों की तरह जमकर नाच - गाना हुआ है. दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ ही पूरे गांव ने दावत भी उड़ाई है, लेकिन इसके बावजूद यह शादी हर तरफ चर्चा का सबब बनी हुई है. आइये हम आपको बताते हैं कि आखिर इस अनोखी शादी (unique wedding) की इतनी चर्चा होने के पीछे क्या माजरा है.
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दरअसल, प्रयागराज शहर से करीब तीस किलोमीटर दूर घूरपुर इलाके के भैदपुर गांव में एक अनोखी शादी हुई है. मंगलवार की शाम को गांव में एक बारात आई. ये बारात रेलवे के रिटायर्ड कर्मचारी नब्बे बरस के शिवमोहन पाल के घर से निकली और गांव में घूमते हुए वापस उन्हीं के घर आ गई. इसके बाद शुरू हुई शादी की रस्में. सबसे पहले महिलाओं ने मंगल गीत गाए. पंडित जी ने मंत्र पढ़े. मंत्रोच्चार के बाद सात फ़ेरे हुए. लोगों ने 32 साल के दूल्हे राजा पंचराज को बधाई दी. यह शादी भी दूसरी आम शादियों की तरह ही थी, सिवाय दुल्हन के.
इस अनूठी शादी में दुल्हन कोई लड़की नहीं थी. 32 साल के दूल्हे पंचराज शादी लकड़ी और कागज़ से तैयार किये गए एक पुतले से कराई गई है. शिवमोहन के 9 बेटे और तीन बेटियां हैं. उन्होंने अपने सभी बच्चों की शादी वक्त पर कर दी थी, सिवाय आठवें नंबर के पंचराज के. शिवमोहन खुद मास्टर डिग्री लिए हुए हैं. पढ़ाई की वजह से ही उन्हें सरकारी नौकरी मिली थी. उन्होंने अपने सभी बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ाया भी.
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लेकिन आठवें नंबर का बेटा पंचराज उनकी लाख कोशिशों के बावजूद कभी स्कूल नहीं गया. वह हमेशा पढ़ाई से जी चुराता था. स्कूल जाने के बजाय दोस्तों के साथ खेला करता था. पढ़ने के लिए कहने पर रोता या बहानेबाजी करता रहता था. अनपढ़ होने की वजह से आज उसके पास कोई रोज़गार भी नहीं है. वह घर में पले हुए जानवरों को चराता है. शिवमोहन को इसका काफी मलाल है. वह बेटे पंचराज के बिलकुल न पढ़ने और उसके बेरोजगार रहने की वजह से काफी दुखी रहते हैं.
बेटे की लापरवाही और नालायकी की वजह से ही उन्होंने उसका ब्याह नहीं कराने का फैसला लिया था. उनका मानना था कि अनपढ़ और बेरोज़गार पंचराज के साथ शादी कर कोई लड़की जीवन भर खुश नहीं रह सकेगी. उन्हें अपने बेटे की नहीं, बल्कि दूसरे की बेटियों की ज़्यादा फ़िक्र थी, इसीलिये वह किसी लड़की की ज़िंदगी खराब नहीं करना चाहते थे. इस तरह से शिवमोहन ने पुतले के साथ बेटे पंचराज की शादी कराकर उसे उसकी गलती का एहसास कराया तो साथ ही समाज को यह संदेश भी दिया कि बेटियां अनपढ़ -गंवार व निठल्ले बेरोजगारों के साथ कभी विदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा होने पर उनका पूरा जीवन नरक सा हो जाता है.
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शिवमोहन ने बेटे पंचराज को सबक तो सिखाया लेकिन एक पिता होने के नाते उन्हें हमेशा इस बात का एहसास होता रहा कि अगर पंचराज की शादी नहीं हुई तो हिन्दू रीति रिवाजों के मुताबिक़ देहांत होने पर उसकी तेरहवीं नहीं हो सकेगी. शिवमोहन खुद नब्बे साल के हो चुके हैं. उम्र के आख़िरी पायदान पर हैं. ऐसे में वह अपने जीते जी पंचराज की शादी करा देना चाहते थे. किसी लड़की की ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं कराना चाहते थे, इसीलिये पुतले के साथ बेटे की प्रतीकात्मक शादी कराई. जो कि आज लोगों के बीच चर्चा का सबब बनी हुई है.
Source : News Nation Bureau