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नेमप्लेट विवाद पर फैसले का दिखने लगा असर, सामने आईं कई तस्वीरें

नेम प्लेट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. अब इसका असर उत्तर प्रदेश में दिखने लगा है. इसकी कुछ तस्वीरें सामने आई हैं.

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Ritu Sharma
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कांवड़ यात्रा 2024( Photo Credit : News Nation )

Name Plate Row: सावन का महीना शुरू होते ही श्रद्धालुओं में उत्साह और भक्ति की लहर दौड़ जाती है. इसी के साथ पवित्र कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है. इस दौरान सड़कों पर गगरियों में गंगाजल लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइनें देखने को मिलती हैं. शिव भक्ति में लीन इन श्रद्धालुओं को 'भोले' कहा जाता है. हरिद्वार में आजतक को गंगाजल ले जाते हुए दो श्रद्धालु मिले, जिनमें से एक हिंदू और दूसरा मुसलमान है. इनकी भक्ति गंगा-जमुनी तहजीब और सौहार्द का जीता जागता उदाहरण है. बता दें कि हरिद्वार में गंगाजल ले जाते हुए मिले ये दो श्रद्धालु इस बात का प्रतीक हैं कि भारत में धर्म और आस्था के मामले में आपसी सौहार्द और भाईचारा कितना महत्वपूर्ण है. दोनों श्रद्धालु, एक हिंदू और एक मुसलमान, शिवभक्ति में लीन होकर गंगाजल ले जा रहे थे, यह दिखाता है कि आस्था किसी धर्म की सीमा में बंधी नहीं होती. यह गंगा-जमुनी तहजीब का एक सजीव उदाहरण है.

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नेमप्लेट आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

वहीं सावन महीने के पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिससे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों और ठेलेवालों में खुशी की लहर दौड़ गई. सुप्रीम कोर्ट ने नेमप्लेट लगाने के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है. इस फैसले के बाद दुकानों से नेमप्लेट हटाई जाने लगी हैं. सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है. इस मामले में अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी.

नेमप्लेट आदेश का विवाद

दरअसल, पिछले हफ्ते मुजफ्फरनगर पुलिस ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को अपने मालिकों की नेमप्लेट लगाने के निर्देश दिए थे. बाद में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आदेश को पूरे राज्य में लागू कर दिया. उत्तराखंड सरकार ने भी इसी तरह का आदेश जारी किया. योगी सरकार के इस कदम की विपक्ष, एनडीए के सहयोगी जेडी(यू) और आरएलडी समेत अन्य पार्टियों ने आलोचना की.

आलोचनाओं का कारण

आपको बता दें कि इस आदेश की आलोचना इसलिए हो रही थी क्योंकि यह धार्मिक भेदभाव और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देने वाला माना जा रहा था. दुकानदारों और ठेलेवालों को यह आदेश अनिवार्य रूप से लागू करना पड़ा, जिससे उनके व्यापार पर असर पड़ा. इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई और सर्वोच्च अदालत ने इसे रोकने का आदेश जारी किया.

क्या है पूरा मामला?

आपको बता दें कि पिछले हफ्ते मुजफ्फरनगर पुलिस ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को अपने मालिकों की नेमप्लेट लगाने के निर्देश दिए थे. इस आदेश के बाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया. उत्तराखंड सरकार ने भी इस संबंध में आदेश जारी किया. इस निर्णय की ना सिर्फ विपक्ष, बल्कि एनडीए के सहयोगी जेडी(यू) और आरएलडी समेत अन्य पार्टियों ने भी आलोचना की थी.

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विपक्ष और सहयोगी दलों की प्रतिक्रिया

विपक्ष और सहयोगी दलों ने इस निर्णय को गैरजरूरी और व्यापारियों के लिए अनावश्यक बोझ बताया. उन्होंने इसे धार्मिक भेदभाव और नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ करार दिया. जेडी(यू) और आरएलडी ने इसे व्यापारियों के अधिकारों का हनन बताया और कहा कि इस प्रकार के निर्णय से सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और इस निर्णय पर अंतरिम रोक लगा दी. अदालत ने कहा कि इस मामले में सभी पक्षों की बात सुनने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा. 26 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में अदालत इस मामले पर विस्तृत विचार करेगी.

HIGHLIGHTS

  • नेम प्लेट विवाद पर फैसले का दिखने लगा असर
  • कांवड़ रूट पर दुकानदारों ने हटाई नेमप्लेट
  • ऐसे ही सामने आईं कई तस्वीरें

Source : News Nation Bureau

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