लखनऊ के मोहनलाल गंज में एक शख्स ने अजब गजब फर्जीवाड़ा कर सबको चौंका दिया. इस इंसान ने मंदिर की जमीन को हड़पने के लिए भगवान को ही मृत घोषित कर दिया. इस फर्जीवाड़े के सामने आते ही प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने एसडीएम जांच के लिए आदेश दिए गए हैं. हिंदुस्तान में छपी खबर के अनुसार इस शख्स ने पहले तो कानूनी कागजातों में एक आम व्यक्ति को भगवान कृष्ण-राम का फर्जी पिता बनाया. फिर दिखाया कि भगवान कृष्ण राम की मृत्यु हो गई, जिसके बाद कानूनी तौर पर जमीन का मालिकाना हक फर्जी पिता को दिला दिया गया.
मंदिर के ट्रस्टी की शिकायत पर हुई कार्रवाई
खबर के अनुसार इस फर्जीवाड़े के बारे में मंदिर के ट्रस्टी की शिकायत नायब तहसीलदार से होते हुए कलेक्टर तक पहुंची. लेकिन जब इस मामले में इनके स्तर पर कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई और न्याय नहीं मिला तो मामला डिप्टी सीएम तक पहुंचा तब जाकर जांच हुई. इसमे सामने आया कि पीड़ित मंदिर ट्रस्ट सही है. चकबंदी के दौरान मंदिर के विग्रह, जिनके नाम पर जमीन थी, उसी नाम से किसी शख्स को दस्तावेजों में जालसाजी करके मालिकाना दर्ज किया गया था. यह पूरा मामला मोहनलालगंज के कुशमौरा हलुवापुर का है. हिंदुस्तान में छपी इस खबर के मुताबिक उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के निर्देश पर एसडीएम सदर प्रफुल्ल त्रिपाठी को जांच सौंपी गई है.
जाने, क्या है पूरा मामला
पीड़ित पक्ष की अर्जी में बताया गया है कि इस केस में वादी मंदिर यानी ट्रस्ट है. खसरा संख्या 138, 159 और 2161 कुल रकबा 0.730 हेक्टेयर ‘कृष्णराम’ भगवान के नाम पर खतौनी में दर्ज है. सूत्रों के अनुसार यह मंदिर 100 वर्ष पुराना है. भगवान के विग्रह का नाम 1397 फसली की खतौनी में लगातार दर्ज रहा. 1987 में चकबंदी प्रक्रिया के दौरान कृष्णराम को मृतक दिखाकर उनके फर्जी पिता गया प्रसाद को वारिस बताते हुए इसमें नाम दर्ज कर दिया गया.
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इसके बाद वर्ष 1991 में गया प्रसाद को भी मृत दर्शा कर उसके भाई रामनाथ और हरिद्वार का नाम फर्जी तौर पर दर्ज किया गया. पूरा मामला सामने आने पर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सुशील कुमार त्रिपाठी ने वर्ष 2016 में तहसील दिवस के दौरान भी फरियाद की लेकिन तब भी इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. वर्ष 2018 में जब फरियादी डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा से मिले तो उन्होंने इस मामले की जांच के निर्देश डीएम लखनऊ को दिए.
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एसडीएम सदर प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी के अनुसार जांच में पाया गया कि पूर्व में मंदिर और जमीन कृष्ण-राम भगवान के नाम ही दर्ज थी. दरअसल जमीन के कानूनी दस्तावेजों में भगवान के विग्रह को व्यक्ति के रूप में मान्यता दी जाती रही है. कुछ लोगों ने इस बात का लाभ उठाते हुए हेरफेर कर के उसी नाम से किसी शख्स को दस्तावेजों में दर्ज कर दिया.
अभी हो रही है एक और जांच
एसडीएम ने बताया कि पहली बार 1968 में यह जमीन मंदिर के नाम तहसीलदार के आदेश से दर्ज हुई थी. तहसीलदार ने पट्टा किया था जिस पर मंदिर का निर्माण हुआ है. उसके पूर्व वह जमीन बंजर के नाम थी. अब एक और जांच इस बात की चल रही है कि क्या तहसीलदार को उस समय सीधे तौर पर पट्टा करने का अधिकार था. अभी यह जांच पूरी नहीं हुई है.
HIGHLIGHTS
- दस्तावेजों में भगवान के विग्रह को व्यक्ति के रूप में मान्यता दी जाती रही है.
- यह मंदिर 100 वर्ष पुराना है.
- भगवान के विग्रह का नाम 1397 फसली की खतौनी में लगातार दर्ज रहा.
Source : News Nation Bureau