योगी सरकार ने सपा शासनकाल में हुई 4000 उर्दू शिक्षकों की भर्ती को रद्द कर दिया है इसके पीछे सरकार का तर्क है कि बेसिक शिक्षा विभाग के पास पहले से ही उर्दू शिक्षक मानक से अधिक इसलिए अगर जरूरत पड़ी तो ही आगे इन शिक्षकों की भर्ती की जाएगी. अखिलेश सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में 4000 उर्दू शिक्षकों की भर्ती प्राथमिक स्कूलों के लिए निकाली थी इसके लिए सहायक शिक्षकों के खाली चल रहे 16407 पदों में 4000 पद उर्दू शिक्षक में परिवर्तित किए गए थे.
मार्च 2017 में इसकी काउंसलिंग की तारीख भी घोषित कर दी गई थी लेकिन सरकार बदलने के बाद सरकार ने भर्ती पर रोक लगा दी थी. भर्ती कोर्ट गए तो कोर्ट ने आदेश निर्देश कि से जल्द पूरा किया जाए लेकिन कल 20 शिक्षा विभाग के सचिव प्रभात कुमार ने आदेश जारी कर 4000 उर्दू शिक्षक भर्ती पर रोक लगा दी.
विभाग की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि मौजूदा उर्दू शिक्षकों की संख्या अधिक है. छात्रों की संख्या के हिसाब से प्रति शिक्षक 5 से छह उर्दू छात्र है एस में भर्ती के अभी कोई आवश्यकता नहीं है.
भर्ती प्रक्रिया रुक जाने से नाराज समाजवादी पार्टी का तर्क है कि सरकार ने नौजवानों को रोजगार देने का वादा किया था लेकिन लगता है हमारी पार्टी और हमारी पार्टी के किए गए फैसलों से सरकार इतना नाराज है कि इस बात का भी ध्यान नहीं दे पा रही है कि लोगों का रोजगार छिन रहा है.
और पढ़ें: बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने लिखी 'लालू-लीला', 300 पन्नों की किताब का जेपी जयंती पर विमोचन
कांग्रेस भी इसे भेदभाव की राजनीति बता रही उनका मानना है कि यूपी सरकार की इच्छा सिर्फ भेदभाव जातिवाद करना है लेकिन अब जनता समझ चुकी है इसका जवाब जल्द मिलेगा.
वहीं मुस्लिम धर्मगुरु इसे अफसोस बात मान रहे हैं मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि उर्दू को आगे बढ़ाया जाए. उर्दू इस देश की सबसे महत्वपूर्ण दूसरी भाषा है. ऐसे में सरकार का यह फैसला गलत है लिहाजा सरकार को इस पर दोबारा विचार करना चाहिए.
Source : News Nation Bureau