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8 फीट ऊंची दीवार से कूद पड़े थे अखिलेश यादव, जेपी जयंती पर सुरक्षा के सख्त इंतजाम

समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर राजधानी लखनऊ में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है. अखिलेश यादव के JPNIC बिल्डिंग जाने की घोषणा के बाद, पुलिस ने उनके निवास के बाहर बैरिकेडिंग कर दी है और भारी पुलिस बल तैनात किया है.

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Garima Sharma
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8 फीट ऊंची दीवार से कूद पड़े अखिलेश यादव, जेपी जयंती पर सुरक्षा के सख्त इंतजाम

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समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर लखनऊ में एक बार फिर राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है. 2023 में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने JPNIC में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने का ऐलान किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं. पिछले साल, अखिलेश यादव ने 8 फीट ऊंची दीवार को फांदकर JPNIC में प्रवेश किया था, जिससे सियासी हलचल तेज हो गई थी. इस बार पुलिस ने सुरक्षा के कड़े उपाय अपनाए हैं.

पुलिस ने सुरक्षा के कड़े उपाय अपनाए

JPNIC के गेट को तीन शेड से ढक दिया गया है और अखिलेश यादव को बिल्डिंग में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है. बताया जा रहा है कि वे साढ़े 10 बजे JPNIC के लिए निकल सकते हैं. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, उनके घर के बाहर बैरिकेडिंग की गई है और भारी पुलिस बल तैनात किया गया है. इसके साथ ही, JPNIC जाने वाले रास्ते पर भी पुलिस तैनात है और बिल्डिंग के गेट को बैरिकेडिंग कर बंद कर दिया गया है.

सरकार पर तीखा हमला किया 

अखिलेश यादव ने इस स्थिति पर सरकार पर तीखा हमला किया. उन्होंने पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर जेपी जयंती के मौके पर JPNIC में माल्यार्पण की अनुमति मांगी थी, लेकिन पुलिस ने उनकी मांग को नकार दिया. इसके परिणामस्वरूप, गुरुवार रात करीब साढ़े 11 बजे, जब वे JPNIC पहुंचे, तो गेट को सील करने पर उन्होंने सरकार पर भड़कते हुए कहा कि "सरकार क्या छिपाना चाहती है?" उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार बिल्डिंग को बेचना चाह रही है और श्रद्धांजलि देने से रोकना गलत है.

पुलिस कार्रवाई को भेदभाव

अखिलेश यादव के इस बयान से साफ है कि उन्होंने पुलिस की कार्रवाई को राजनीतिक भेदभाव के रूप में देखा है. उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के कदम न केवल लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह हैं, बल्कि समाजवादी विचारधारा के प्रति भी असम्मान का प्रतीक हैं. 

घटना को आगामी चुनावों से जोड़ा

इस बीच, राजनीतिक विश्लेषक इस घटनाक्रम को आगामी चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं. उनका मानना है कि इस प्रकार की घटनाएं न केवल राजनीतिक दलों के बीच की खाई को बढ़ा रही हैं, बल्कि इससे समाज में भी अस्थिरता बढ़ रही है. अब देखना यह होगा कि इस बार अखिलेश यादव की जयंती पर उनका प्रयास कितना सफल होता है और सरकार इस पर किस तरह की प्रतिक्रिया देती है.

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