एक तरफ जोशीमठ, लखनऊ और आगरा इमारतें जमींदोज हो रही हैं तो दूसरी तरफ दुनिया की सबसे पुरानी नगरी काशी में गंगा किनारे हजारों मकान टेढ़े होकर धंसते जा रहे हैं. मकानों में बड़े-बड़े क्रैक हो गए हैं. नए बने मकानों के छत लटक गए हैं. इनमें रह रहे सैकड़ों परिवार और उनके साथ जनहानि का खतरा बना हुआ. इसे लेकर वाराणसी नगर निगम का कहना है कि 400 से अधिक घर जर्जर है पर इसकी जिम्मेदारी भवन स्वामी की ही है...
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काशी में गंगा घाट के किनारे जिस तरह हजारों मकान टेढ़े हो रहे और फटते जा रहे हैं, उससे चिंता बेहद बढ़ गई है. आलम ये है कि गंगा के किनारे घाट के पास महेश नगर में मकानों को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे ये मकान कभी भी ताश के पत्तों की तरह ढह सकते हैं.
वाराणसी में गंगा के किनारे सामने घाट का पूरा इलाका धंसता जा रहा है. आलम ये है कि वहां हजारों मकान टेढ़े हो गए. मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं. फिर भी हजारों लोग वहां रह रहे हैं, ऐसे में कभी भी लखनऊ से भी बड़ा हादसा यहां हो सकता है. नगर निगम दावा तो करता है कि यहां मरम्मत करवाने का और घर खाली करवाने पर जमीनी हकीकत में कुछ भी नहीं है. यहां रहने वाले लोग कहते हैं कि सिर्फ फर्ज अदाएगी हो रही है और कुछ नहीं. गंगा के कटान का असर है कि सब कुछ जमींदोज होने के कगार पर है.
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वाराणसी नगर निगम के पीआरओ संदीप मिश्रा ने कहा कि वाराणसी जनपद में 100 जर्जर मकान नहीं बल्कि उससे अधिक हैं, सभी मकानों की जांच की जा चुकी है. मूलत: ये प्रक्रिया जोनल अभियंता करते हैं और अगर कोई विवाद नहीं है तो उस मकान को गिराया जाता है. हम जर्जर मकानों पर कार्रवाई करते हैं. अगर कोई कोर्ट से कोई रोक नहीं है तो जो भी नियम के अनुसार कार्रवाई है की जा रही है पर 400 मकान जर्जर है पर अभी तक हमने कोई गिराया नहीं है. अगर कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदारी भवन स्वामी की ही होती है.