Varanasi Manikarnika Ghat: पिछले कुछ समय से देशभर में भारी बारिश हो रही है. इस बारिश की वजह से कई नदियां उफान पर है. शिव की नगरी वाराणसी में भी गंगा अपने जलस्तर से ऊपर बह रहा है और इस वजह से पहले तो छोटे-छोट मंदिर और घाट जलमग्न हो गए थे, लेकिन अब मणिकर्णिका घाट भी गंगा की चपेट में आ चुका है. मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही नहीं बल्कि देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. यहां 24 घंटे शव जलते रहते हैं.
गंगा में जलमग्न हुआ मणिकर्णिका घाट
पौराणिक कथाओं की मानें तो यहां दाह संस्कार करने से व्यक्ति जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है. वहीं, गंगा नदी के बढ़ते जलस्तर को देखते हुए शवदाह का स्थान तक बदलना पड़ा है और मणिकर्णिका घाट की जगह उसके छतों पर दाह संस्कार किया जा रहा है. छतों पर जगह कम होने की वजह से शवों को जलाने के लिए लंबी लाइन लग रही है. जगह की कमी हो चुकी है और इसका खामियाजा शवदाह के लिए पहुंचे लोगों को उठाना पड़ रहा है.
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घाटों के लिए मशहूर बनारस
वाराणसी को बनारस, काशी इन नामों से भी जाना जाता है. यूं तो बनारस शहर अपने घाटों के लिए मशहूर है. जानकारी के अनुसार, बनारस में कुल 80 घाट है. यहां मौजूद हर घाट का अपना एक महत्व है. मणिकर्णिका घाट को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित है, उसमें से एक यह भी है कि जब माता पार्वती ने महादेव के पिता द्वारा अपमान किए जाने के बाद आग में कूद गई थीं. जिसके बाद भगवान शिव माता पार्वती के जलते हुए शरीर को लेकर हिमालय चले गए और काफी दिनों तक उसे लेकर भटकते रहे.
इस वजह से घाट का नाम पड़ा मणिकर्णिका
महादेव की दशा देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से आदि शक्ति के शव को कई टुकड़े में बांट दिया था. आदि शक्ति का शव 51 टुकड़ों में बंट गया और जहां-जहां उनके शरीर का टुकड़ा गिरा, उसे आज शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि इस दौरान माता सती के कान की बाली गिर गई थी. इसलिए इस घाट का नाम मणिकर्णिका रखा गया.