प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में शनिवार को चुनावी रैली को संबोधित करेंगे। इस क्षेत्र में 11 फरवरी को यूपी विधान सभा चुनाव-2017 के पहले चरण का वोट डाला जाना है। भारत की राजनीति में पश्चिम उत्तर प्रदेश का एक खास महत्व है।
जाटों की राजनीति से लेकर चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत जैसे किसान नेता के उभार के साथ-साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम जनसंख्या की मौजूदगी इसे एक अलग पहचान देती है।
26 जिले, 140 विधानसभा सीटें और मुस्लिम जनसंख्या
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 26 जिले आते हैं जहां 11 और 15 फरवरी को चुनाव होने हैं। यूपी में कुल जनसंख्या की 19 फीसदी संख्या मुसलमानों की है। इसमें भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30 से 32 फीसदी जनसंख्या मुसलमानों की है।
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इस बात से सभी राजनीतिक दल वाकिफ है और इसलिए ध्रुवीकरण की कोशिश भी जारी है। अमित शाह ने भी शुक्रवार को मेरठ में अपनी रैली के दौरान कहा था कि बीजेपी की अगर सरकार आई तो केवल किसी एक वर्ग विशेष के खिलाफ कानूनी कदम नहीं उठाए जाएंगे। वहीं, दूसरी पार्टियां मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं।
कैराना, मुजफ्फरनगर और मेरठ की 'सांप्रदायिक राजनीति'
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगो और हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों के बारे में पूरी दुनिया ने पढ़ा और सुना। इस लिहाज से मेरठ, बागपत और मोरादाबाद जैसे जिलों में भी ऐसी हिंसा समय-समय पर नजर आई है।
अलग राज्य की मांग
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य का दर्जा मिलने की मांग भी खूब उठती रही है। पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक और भाषाई अंतर भी इस अलगाव की अहम वजह रहा है।
कई पार्टियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग कर हरित प्रदेश, ब्रज प्रदेश या पश्चिम प्रदेश के नाम से अलग राज्य बनाने की मांग करती रही हैं।
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Source : News Nation Bureau