नब्बे के दशक में पूर्वांचल में आतंक का पर्याय बन चुके श्रीप्रकाश शुक्ला का साथी राजन तिवारी इस समय यूपी पुलिस के शिकंजे में है. 3 दिन पहले गैंगस्टर के एक मामले में उसे गोरखपुर जेल भेजा गया था, जहां से आज सुरक्षा कारणों से राजन तिवारी को फर्रुखाबाद के फतेहगढ़ जेल शिफ्ट कर दिया गया. अपराध की दुनिया में कौन है राजन तिवारी, जिसके ऊपर प्रदेश सरकार ने 20 हजार का इनाम रखा है और वह यूपी के टॉप 50 माफिया की लिस्ट में भी शामिल है. आइये देखते हैं इस रिपोर्ट में राजन तिवारी की हिस्ट्री
गोरखपुर के सोहगौरा गांव का रहने वाला राजन तिवारी एक बेहद साधारण परिवार से है. राजन तिवारी के पिता पेशे से वकील थे. यह वह दौर था जब पूर्वांचल में माफियाओं की तूती बोलती थी और वर्चस्व की जंग में लगभग हर रोज हत्याएं हुआ करती थीं. युवावस्था में लंबे चौड़े कदकाठी वाला राजन भी अपराध की दुनिया के चकाचौंध और अपराधियों की हनक से काफी प्रभावित हुआ. गोरखपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वह छात्रसंघ अध्यक्ष वेद प्रकाश मिश्रा उर्फ वेद गुरु का शिष्य था.
साल 1995-96 में गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजन तिवारी जब पढ़ाई करता था और उसी दौर में अपराधियों के संगत में आया. इस समय तक पूर्वांचल में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपराध की दुनिया में अपनी धाक जमा दी थी और श्रीप्रकाश के रहन-सहन और अपराधी गतिविधियों से प्रभावित होकर राजन तिवारी श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके साथी आनंद पांडेय के करीब पहुंचा. धीरे-धीरे यह तिकड़ी अपराध की दुनिया में काफी चर्चित होती गई और एक के बाद एक ताबड़तोड़ कई हत्याएं करके इन तीनों ने गोरखपुर में दहशत मचा दी.
थोड़े ही समय में राजन तिवारी का नाम उन मामलों में भी जुड़ने लगा, जिनमें श्रीप्रकाश मुख्य आरोपी हुआ करता था. धीरे-धीरे राजन तिवारी अपने कद के चलते श्रीप्रकाश शुक्ला का राइट हैंड बन गया, यहीं से उसके नाम के आगे बाहुबली जुड़ गया. राजन तिवारी का नाम सबसे ज्यादा पहली बार तब चर्चा में आया, जब उसे यूपी के महराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे वीरेंद्र प्रताप शाही पर हमले में माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ आरोपी बनाया गया था. यह घटना गोरखपुर के शास्त्री चौक पर उस समय हुई जब वीरेंद्र शाही अपने घर से निकलकर शहर में जा रहे थे कि घटना में वीरेंद्र शाही गंभीर रूप से घायल हुए और उनका गनर मारा गया.
इसी घटना के बाद राजन तिवारी यूपी पुलिस के लिए वांटेड बन गया. उत्तर प्रदेश में दर्ज आपराधिक मामलों में कानूनी कार्रवाई और गैंगवार से बचने के लिए राजन ने बिहार पूर्वी चंपारण को अपना ठिकाना बनाया था. यहां पर वह गोविंदगंज विधानसभा के विधायक देवेंद्र दुबे की शरण में गया, जिसे वह मामा कहता था और उनसे राजनीति का ककहरा भी राजन ने सीखना शुरू कर दिया. इसी दौरान देवेंद्र दुबे की हत्या हो गई जिसमें 2 नाम काफी चर्चित हुए, एक नाम था विधायक अजीत सरकार का, दूसरा था लालू सरकार में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का.
माना जाता है कि देवेंद्र दुबे की हत्या रेलवे की ठेकेदारी में वर्चस्व को लेकर हुई थी और इस हत्या का बदला लेने के लिए राजन तिवारी ने श्रीप्रकाश शुक्ला के सहयोग से पहले बृज बिहारी को ठिकाने लगाया उसके बाद फिर अजीत सरकार को. इस हत्याकांड में राजन तिवारी को निचली अदालत से उम्रकैद की सजा भी हुई, लेकिन सबूतों के अभाव में साल 2014 में पटना हाईकोर्ट से उसे बरी कर दिया. वहीं, राजन तिवारी को बहुचर्चित माकपा विधायक अजीत सरकार के हत्याकांड के मामले में पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था. सालों तक सलाखों के पीछे रहने वाले राजन तिवारी का रसूख कम नहीं हुआ और वह कथित मामा देवेंद्र दुबे के विधानसभा गोविंदगंज से चुनाव जीतकर दो बार विधानसभा पहुंचा.
बिहार में जब नीतीश की सरकार बनी उसके बाद से राजन तिवारी पर शिकंजा कसना शुरू हुआ और वह बिहार से भागकर उत्तर प्रदेश पहुंचा और यहां की सियासत में अपना भाग्य आजमाने लगा. राजन तिवारी ने देवरिया जिले से विधानसभा चुनाव की तैयारियां भी करनी शुरू कर दी थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लखनऊ में भाजपा की सदस्यता ली थी. हालांकि, इस पर विवाद होने के बाद पार्टी ने राजन को साइड लाइन कर दिया था.
योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में जबसे अपराधियों के खिलाफ कड़ा शिकंजा कसना शुरू किया है, उसमें राजन तिवारी का भी नाम शामिल है. मुख्यमंत्री बनने से पहले सांसद रहे योगी आदित्यनाथ ने उस दौर में उन सभी घटनाओं को देखा समझा है जिसे राजन तिवारी और श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर में अंजाम दिया करते थे. सीएम योगी की सख्ती के बाद यूपी के टॉप 50 माफियाओं की सूची में शामिल राजन तिवारी को 3 दिन पहले बिहार के रक्सौल से गिरफ्तार किया गया था. गोरखपुर की कैंट पुलिस व एसओजी की टीम ने उसे गिरफ्तार कर गैंगस्टर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. अकेले गोरखपुर में उस पर 36 से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे, जिसमें अपने रसूख का इस्तेमाल कर वह अधिकतर मामलों से बरी हो चुका है. उस पर गोरखपुर पुलिस की तरफ से 20 हजार का इनाम भी था.
आज उसे गोरखपुर जेल से फर्रुखाबाद के फतेहगढ़ जेल भेज भी इसीलिए शिफ्ट किया गया ताकि वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल यहां ना कर सके. माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार ने अब राजन तिवारी की कुंडली खंगालना शुरू कर दी है और जल्द ही उसके सम्पत्ति और उसपर दर्ज दूसरे मामलों की भी जांच शुरू कर दी जाएगी.
Source : Deepak Shrivastava