अभी तक आप सुनते आए होंगे कि भगवान श्रीकृष्ण और जरासंध के बीच हुए युद्ध में श्रीकृष्ण ने जरासंध को हरा दिया था लेकिन एनसीआईआरटी की किताब में इसे 'गलत' बताया जा रहा है. एनसीईआरटी की किताब में केन्द्रीय विद्यालय के कक्षा सात के छात्रों को महाभारत का गलत पाठ पढ़ाया जा रहा है. एनसीईआरटी (NCERT) की पुस्तक ‘बाल महाभारत कथा’ में इतिहासकार चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा है कि जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में हारा दिया था. यही वजह है कि उन्हें मथुरा छोड़कर द्वारिका भागना पड़ा था. भगवान श्रीकृष्ण के बारे में एनसीईआरटी की पुस्तक में गलत और भ्रामक तथ्य बच्चों को पढ़ाए जाने पर विवाद खड़ा हो गया है. क्योंकि महाभारत सहित प्रेम सुधा सागर और अन्य ग्रंथों में भी श्रीकृष्ण और बलराम द्वारा जरासंध को पराजित करने का उल्लेख है.
गोरखपुर जिले के केंद्रीय विद्यालय में कक्षा सात के विद्यार्थियों को तथ्यों से इतर महाभारत पढ़ाई जा रही है. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पुस्तक में लिखा है कि जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में हरा दिया था. इस कारण श्रीकृष्ण को द्वारका जाना पड़ा था. इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय प्राचीन इतिहास के शिक्षक प्रो. राजवंत राव ने बताया कि जरासंध से भगवान श्रीकृष्ण के पराजित होने का उल्लेख महाभारत में नहीं है. हरिवंश पुराण या किसी दूसरी जगह भी इस तरह के तथ्य नहीं मिले हैं. सभी जगह इस बात का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण अंतिम समय तक शांति का प्रयास करते रहे. वह जरासंध को मिले वरदान से भलीभांति परिचित रहे हैं. वे जानते रहे हैं कि सामान्य परिस्थितियों में किसी शस्त्र से जरासंध की मौत नहीं हो सकती है. लिहाजा, द्वारका नामक शहर बसाया और कहा कि अब मथुरा के लोग सुख-शांति से रहेंगे. उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने ही भीम की मदद से जरासंध का वध कराया. एनसीईआरटी या किसी भी पुस्तक में इस तरह के झूठ और शब्दों का प्रयोग सही नहीं है.
केंद्रीय विद्यालय के कक्षा सात में बच्चों को 'बाल महाभारत कथा' नामक किताब पढ़ाई जा रही है. यह प्रसंग युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद के रूप में उल्लेखित है. किताब में उल्लेखित तथ्यों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण राजसूय यज्ञ के लिए युधिष्ठिर से चर्चा कर रहे थे. पुस्तक के पेज नंबर 33 के अध्याय 14 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस यज्ञ में सबसे बड़ा बाधक मगध देश का राजा जरासंध है. जरासंध को हराए बिना यह यज्ञ कर पाना संभव नहीं है. हम तीन बरस तक उसकी सेनाओं से लड़ते रहे और हार गए. हमें मथुरा छोड़कर दूर पश्चिम द्वारका में जाकर नगर और दुर्ग बनाकर रहना पड़ा.
गीता प्रेस गोरखपुर के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि मूल महाभारत में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण के जरासंध से हारने का उल्लेख नहीं है. मूल श्लोक में भी इसका जिक्र नहीं है. इस बात का उल्लेख जरूर है कि जरासंध से पीड़ित होकर ही भगवान कृष्ण द्वारका आ गए थे. महाभारत में राजसूय यज्ञ के आरंभ का 14वें अध्याय का 67वां श्लोक है. इसमें भीम द्वारा जरासंध के वध का जिक्र है. श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया था. इससे कुपित होकर कंस के मित्र व रिश्तेदार जरासंध ने मथुरा पर लगातार आक्रमण करना शुरू कर दिया. श्रीकृष्ण उसे बार-बार परास्त करते, फिर भी वह हार नहीं मान रहा था. ऐसा 16 बार हुआ. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने आत्म चिंतन किया. सोचा कि कंस का वध करने का उत्तरदायी हूं. जरासंध बार-बार आक्रमण करता है, तो जनहानि होती है. मथुरा का विकास बाधित है. श्रीकृष्ण यह भी जानते रहे हैं कि जरासंध की मृत्यु उनके हाथों नहीं लिखी है. लिहाजा, मथुरा का त्याग कर दिया और द्वारका जाकर रहने लगे. एनसीईआरटी की पुस्तक में क्या उल्लिखित है, इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं.
गीता प्रेस पुस्तक केन्द्र के इंचार्ज का कार्य देख रहे सर्वजीत पाण्डेय प्रेम सुधा सागर पुस्तक दिखाते हुए कहते हैं कि प्रेम सुधा सागर में भगवान श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं का वर्णन किया गया है. उन्होंने बताया कि इस पुस्तक के अध्याय नौ में लिखा गया है कि उन्होंने जरासंध को हराने के बाद उन्होंने मथुरा छोड़कर उन्होंने द्वारिकापुरी में निवास किया था. उन्होंने कहा कि वे अपने बुआ के लड़के रक्षा के लिए जरासंघ को नहीं मार रहे थे. उन्होंने अपनी बुआ को वचन दिए थे कि वो सौ पाप करेगा तो नहीं मारेगा. 100 पाप पूरा होने के बाद मार देंगें. 100 पाप पूरा होने के बाद उन्होंने उसका वध कर दिया. प्रेम सुधा सागर के पेज नंबर 207 से 209 के बीच इसका वर्णन है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध को हराया था.
Source : News Nation Bureau