उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति हमेशा से ही सियासत का सिरमौर बनकर रही है. चुनाव में जातीय गणित को साधने में हर दल अपना-अपना गुणा-गणित लगाते है. इसी के मद्देनज़र प्रदेश की बीजेपी सरकार ने भी कड़ा और बड़ा फैसला लेते हुए 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण देने की योजना बनाई है. बाकायदा इसकेलिए पूरी तरह से विधिक कार्यवाही को नए तरीके से करने की तैयारी की है. माना जा रहा है कि राज्य सरकार इसके लिए विधानसभा के आगामी मानूसन सत्र में इन जातियों को आरक्षण देने का प्रस्ताव पास कर सकती है, जिसे संसद के दोनों सदनों से पारित करने के लिए केंद्र को भेजा जाएगा।
कानूनी राय भी ली जा रही
इस प्रस्ताव को न सिर्फ विधानसभा से पास कराकर बल्कि इसमें किसी भी तरह की कोई कानूनी अड़चन न हो इसके लिए भी हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में संबंधित लंबित सभी मामलों में सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए अधिसूचनाओं को रद्द करवा दिया गया है ताकि कोई कानूनी अड़चन न रहे। इस बाबत निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद का कहना है कि केंद्रीय मंत्री ए नारायण स्वामी ने बीती 26 जुलाई को पत्र भेज कर इस संबंध में सकारात्मक सहमति जताई है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने दावा किया है कि साल 1950 से पहले भी मझवार और भर जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में होने की वजह से लाभ मिलता था लेकिन बाद के वर्षों में उत्तर प्रदेश में इन जातियों को ओबीसी की जातियों की सूची में डाल दिया गया।
सर्वे के बाद लिया सियासी फैसला
इस बाबत फिलहाल तो यही संकेत देखने को मिल रहे हैं कि, आने वाले कुछ दिनों में सरकार और भाजपा की यह रणनीति साफ हो जाएगी। दरअसल, पार्टी संगठन के बड़े सूत्रों और राज्य सरकार के अधिकारियों की मानें तो तय किया गया है कि लंबे समय से संघर्ष कर रही 17 जातियों को अनुसूचित जाति जनजाति की श्रेणी में शामिल करते हुए उन्हें आरक्षण के साथ अन्य सुविधाएं भी दी जाएं। यूपी में इसके लिए दो बार हुए सर्वे में भी इन जातियों को आर्थिक व सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ा बताते हुए अनुसूचित जाति जन जाति में शामिल होने के लिए उपयुक्त माना गया है।
सियासी मज़बूरी बड़ा फैक्टर
आपको बता दें कि मिशन 2024 के लिए बीजेपी ने पूरी तरह से कमर कस ली है. आगामी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों को हर हाल में जीतने का लक्ष्य पार्टी ने सभी कार्यकर्ताओं के समक्ष रखा है. इसके लिए जातीय और सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए हर स्तर पर काम किया जा रहा है. इसलिए ही ओबीसी की इन 17 जातियों को अलग से आरक्षण का लाभ देने का फैसला किया गया है. गौरतलब है कि यूपी चुनाव के दौरान ओबीसी को आरक्षण का लाभ न देने के इसी मुद्दे पर सुभाषपा के अध्यक्ष ओपी राजभर ने बीजेपी से अपना पल्ला झाड़ लिया था लेकिन इस बार राजभर को यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि जल्द ही इस मुद्दे को अंजाम तक पहुंचा दिया जाएगा.
यूपी में ओबीसी है बड़ा चुनावी फैक्टर
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी वोटर सबसे बड़े चुनावी फैक्टर के तौर पर अपनी भूमिका अदा करता आया है. यही कारण है कि ओबीसी वर्ग को बड़े पैमाने पर साथ लेने के बाद ही साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी संगठनों के साथ 325 सीटें जीतकर प्रदेश की कमान संभाली थी. इस लिहाज से मिशन-2024 में 80 सीटें पाने के लिए ही भाजपा की राज्य व केंद्र सरकार एक बार फिर ओबीसी पर ही दांव लगाने की तैयारी में है। इन जातियों को विधानसभा चुनाव 2022 से पहले आरक्षण न देने के कारण पार्टी को सियासी नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी।
Source : Arun Kumar