उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले सीएम पुष्कर सिंह धामी ने एक बड़ी घोषणा करके सबको चौंका दिया था कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो पूरे प्रदेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाएगा. अब धामी सरकार की पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापसी करने के बाद अब यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए ड्राफ्टिंग कमेटी के गठन की अधिसूचना जारी की गई है. इस कानून के लिए काम शुरू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है. यह कमेटी यूसीसी कानून बनाने के लिए ड्राफ्ट तैयार करेगी. कमेटी के गठन का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है.
इस कमेटी में पांच सदस्य होंगे और वो कौन-कौन होगा चलिए, आपको वो भी बताते हैं... इस कमेटी का चेयरमैन SC की रिटायर्ड जज रंजना देसाई को चेयरमैन बनाया गया. इसके अलावा कमेटी में दिल्ली HC के पूर्व जज प्रमोद कोहली को भी शामिल किया गया है. पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह भी इस कमेटी के सदस्य होंगे. इसमें भी दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुलेखा डंगवाल का नाम शामिल है. टैक्स पेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष मनु गौड़ को भी इस कमेटी का सदस्य बनाया गया है.
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एक जैसी स्थिति प्रदान करती है. इसका पालन धर्म से परे सभी के लिए जरूरी होता है.
क्या संविधान में इसका प्रावधान है?
हां, संविधान के अनुच्छेद 44 कहता है कि शासन भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा. अनुच्छेद-44 संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में एक है. यानी कोई भी राज्य अगर चाहे तो इसको लागू कर सकता है. संविधान उसको इसकी इजाजत देता है.अनुच्छेद-37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक प्रावधानों को कोर्ट में बदला नहीं जा सकता, लेकिन इसमें जो व्यवस्था की जाएगी वो सुशासन व्यवस्था की प्रवृत्ति के अनुकूल होने चाहिए.
ये कानून भारत में कब पहली बार आया?
समान नागरिक संहिता की शुरुआत ब्रितानी राज के तहत भारत में हुई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून की संहिता में एकरूपता लाने की जरूरत की बात कही थी. हालांकि, इस रिपोर्ट ने तब हिंदू और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखने की सिफारिश की थी.
Source : Dhirendra awasthi