प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में इंटरनेशनल टाइगर डे (International Tiger Day) के मौके पर देश में बाघों के नए आंकड़े जारी किए. यह आंकड़े सभी को खुशी देने वाले हैं क्योंकि बाघों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है. उत्तराखंड के लिए बहुत हर्ष का विषय इसलिए भी होता है क्योंकि यह जंगलों और पहाड़ों का प्रदेश है.
देश में जहां 2014 में बाघों की गणना के दौरान 2226 बाघ होने के आंकड़े सामने आए थे वहीं अब 2019 में 2967 बाग देश में होने का आंकड़ा सामने आया है. उत्तराखंड में 2014 में जहां बाघों की संख्या 340 थी वहीं 2019 में यह आंकड़ा 442 पहुंच गया है जो प्रदेश वासियों के लिए बहुत ज्यादा खुशी देने वाला है.
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उत्तराखंड में कॉर्बेट नेशनल पार्क राजाजी नेशनल पार्क दो बड़े ऐसे वन्य अभ्यारण है जहां बड़ी संख्या में बाघ पाए जाते हैं. क्षेत्रफल की दृष्टि से भले ही उत्तराखंड कई राज्यों से छोटा हो लेकिन बाघों के संरक्षण के मामले में उत्तराखंड अव्वल है. जिसका नतीजा 2019 में सामने आया है 2018 में की गई बाघों की गणना के आधार पर उत्तराखंड में बाघों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ है.
उत्तराखंड वन महकमे के मुखिया पीसीसीएफ जयराज के मुताबिक प्रदेश के सभी 13 जिलों में बाघ के होने के प्रमाण मिले हैं. देहरादून, टिहरी, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग, पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर ,चंपावत और पिथौरागढ़ इन सभी जिलों में बाघ को वन विभाग ने कैमरों में कैद किया है . और बाघ के प्रत्यक्ष प्रमाण सामने आए हैं.
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साथ ही चमोली, उत्तरकाशी और बागेश्वर इन 3 जिलों में अप्रत्यक्ष तौर पर बाघ के होने के प्रमाण वन विभाग के कर्मचारियों को मिले हैं. इनमें जंगलों में बाघ के पंजों के निशान और मृत जानवरों में बाघ के हमले के सबूत मिले हैं. बाघ फूड चेन में सबसे ऊपर है. कहा जाता है कि जिस जंगल में बाघ सुरक्षित है तो वहां सब सुरक्षित हैं.
उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया पीसीसीएफ जयराज ने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को बाघों की संख्या बढ़ने पर शुभकामनाएं दी है. पीसीसीएफ जयराज का कहना है कि हमारे कर्मचारियों ने बाघों की संख्या बढ़ाने और उसके संरक्षण में अपनी जान तक गवायी है इसलिए यह विभाग के लिए हर्ष का विषय है.
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उत्तराखंड में बाघ हमेशा से सुरक्षित रहे हैं. हालांकि बड़े पैमाने पर आदमखोर बाघों का अंत भी होता रहा है. मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट ने कुमाऊ से लेकर गढ़वाल तक कई जगह आदमखोर बाघों का अंत किया. लेकिन जिम कॉर्बेट कहा करते थे कि बाघ भी जंगल छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहते. लेकिन मनुष्यों के जंगलों में दखल की वजह से बाघ कई बार आदमखोर हो जाते हैं और फिर उन्हें मारना पड़ता है जो बहुत दुखदाई होता है.
HIGHLIGHTS
- उत्तराखंड के 13 जिलों में बाघ के प्रमाण
- वन विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों में हर्ष
- 340 से आंकड़ा पहुंचा 442 बाघों तक
Source : Yogendra Mishra