भारत चीन सीमा पर ऐसे गांव बसे हैं, जहां पहुंचने के लिए सरकारी परमिशन लेनी पड़ती है. जी हां, उत्तरकाशी जिले के सीमांत नेलांग और जादुंग गांव ऐसे ही गांव हैं. उत्तरकाशी से हर्षिल और हार्षिल से नेलांग घाटी में. भारत चीन युद्ध के दौरान 1962 में जादूंग, नेलांग व कारछा गांव से भोटिया और जाड़ समुदाय के ग्रामीणों को हटाया गया था. तब ये ग्रामीण बगोरी, डुंडा व हर्षिल आ गए थे, लेकिन इनके स्थानीय देवता आज भी वहीं हैं. प्रति वर्ष 2 मई को ये ग्रामीण अपने देवताओं की पूजा के लिए जाते हैं.
पिछले गुरुवार को 150 लोग लाल देवता, रिंगाली देवी की डोली लेकर जादूंग पहुंचे. जहां इन ग्रामीणों ने पहले नेलांग में रिंगली देवी की पूजा, अर्चना की. करीब एक घंटे तक रिंगाली देवी चौक में रांसो तांदी नृत्य का आयोजन हुआ. इसके बाद जादूंग में लाल देवता व चैन देवता की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई. पूजा अर्चना के बाद महिला व पुरुषों ने देवता की डोली के साथ रांसो-तांदी नृत्य किया. इस मौके पर स्थानीय महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा से सज्जित होकर पौराणिक गीत भी गाए. पूजा अर्चना समापन होने के बाद ग्रामीणों ने हलवा व पूरी को प्रसाद वितरित किया. शाम होते ही ग्रामीण नेलांग घाटी से वापस बगोरी गांव लौटे. ग्रामीणों के साथ कई पर्यटक भी जादूंग पहुंचे थे.
भारत-चीन सीमा पर स्थित जादूंग व नेलांग गांव में भोटिया व जाड़ समुदाय के लोग अपने देवी व देवताओं की डोली लेकर पहुंचे। जहां महिलाओं व पुरुषों ने पांडव चौक व रिंगाली देवी चौक में रांसो-तांदी नृत्य प्रस्तुत कर अपने आराध्य देव को प्रसन्न किया. इस मौके पर ग्रामीणों ने लाल देवता, चैन देवता तथा रिंगाली देवी की विधि विधान से पूजा अर्चना की। सीमा पर तैनात आइटीबीपी के जवान भी इस पूजा अर्चना में शामिल हुए.
बगोरी निवासी भवान सिंह राणा बताते हैं कि नेलांग और जादुंग में ग्रामीणों की पैतृक भूमि है, लेकिन आज तक ग्रामीणों को अपनी भूमि का प्रतिकर नहीं मिला. न ही गांव का विस्थापन हुआ. कहा- विस्थापन के लिए ग्रामीण आज भी केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. ग्रामीणों को प्रतिवर्ष अपने गांव में अपने अराध्यदेव की पूजा-अर्चना करने के लिए जिला प्रशासन की अनुमति लेकर आना पड़ता है. यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य है.
Source : News Nation Bureau