Joshimath Sinking Row : उत्तराखंड के चमोली में स्थित जोशीमठ में जमीन धंसने के मामले को लेकर शासन प्रशासन हरकत में आ गया है. जिला प्रशासन और एसडीआरएफ की टीमें अब जोशीमठ भूस्खलन में क्षतिग्रस्त हुए घरों पर रेड क्रॉर्स मार्क कर रही हैं. बताया जा रहा है कि अबतक 603 घरों में दरारें आ चुकी हैं, जबकि 100 से अधिक घर ऐसे हैं जो कभी भी गिर सकते हैं. आइये जानते हैं कि जोशीमठ भूस्खलन को लेकर वैज्ञानिक का क्या कहना है?
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जोशीमठ भूस्खलन के मामले में वाडिया भूगर्भ संस्थान के ग्लेशियोलॉजी डिपार्टमेंट के पूर्व HOD और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने न्यूज नेशन से खास बातचीत में बताया कि जोशीमठ मोरेन पर बसा हुआ है. मोरेन यानी ग्लेशियर का मलबा कहा जा सकता है. उन्होंने बताया कि हजारों साल पहले इस क्षेत्र में बड़े ग्लेशियर रहे होंगे और अब उनके मलबे में पिछले सैकड़ों सालों से यह शहर बसा हुआ है.
डॉ. डोभाल ने बताया कि इसके लिए लगातार हो रहा कंस्ट्रक्शन बहुत हद तक बड़ा जिम्मेदार है. टनल का काम भी कुछ हद तक इसे प्रभावित करता है. उनका कहना है कि जिस तरह क्षेत्र में सड़क से लेकर अन्य कार्य किए जा रहे हैं, वह इन करेक्स और फ्रिक्शन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. डॉ. डोभाल ने क्लाइमेट चेंज को भी एक कारण बताया है. पहले इस क्षेत्र में नवंबर से बर्फबारी शुरू हो जाती थी, लेकिन अब जनवरी का पहला हफ्ता भी बीत गया है और अब तक कोई बर्फबारी नहीं हुई है.
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डॉ. डोभाल का कहना है कि सबसे पहले लोगों को वहां से हटाया जाए और लगातार इन करेक्स को मॉनिटर किया जाए, क्योंकि कोई भी यह नहीं बता सकता कि आगे बढ़ेंगे या नहीं बढ़ेंगे, लेकिन इनसे सुरक्षा फिलहाल बहुत जरूरी है.