पुलवामा के पिंगलीना में आईईडी ब्लास्ट में शहीद हुए देहरादून के मेजर चित्रेश बिष्ट की शहादत से हर कोई गमजदा है. किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि 7 मार्च को मेजर चित्रेश की शादी से पहले उनकी शहादत की खबर आ जाएगी. देश की रक्षा करते हुए मेजर चित्रेश ने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया शायद इसीलिए पूरा देश आज भी चित्रेश की शहादत को नहीं भूल पाया है. शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता सुरेंद्र सिंह बिष्ट उत्तराखंड पुलिस के पूर्व अधिकारी हैं. मेजर चित्रेश बिष्ट की शहादत पर उनके पिता सुरेंद्र बिष्ट को गर्व है. बेटे की बात करते-करते अक्सर उनकी आंखें नम हो जाती हैं. लेकिन यह भी जानते हैं कि अगर आंखों में नमी दिखेगी तो परिवार के लोगों को कौन संभालेगा. शायद इसीलिए कहा जाता है कि देश की रक्षा करने वाले फौजियों के परिवार वाले अपने दुखों को सीने में समेट लेते हैं. सुरेंद्र बिष्ट उन जिंदादिल लोगों में शामिल हैं जो बेटे की शहादत को गम के साथ नहीं बल्कि फक्र के साथ याद करना चाहते हैं. सुरेंद्र बिष्ट का कहना है कि उनका बेटा एक तेजतर्रार फौजी अफसर था. बचपन से ही वह मेधावी छात्र रहा.
शहीद मेजर के पिता का लक्ष्य
सुरेंद्र बिष्ट का कहना है कि अब वह एक आवासीय विद्यालय बनाएंगे. जिसमें पहाड़ के गरीब बच्चे जो संसाधनों और आर्थिक तंगी के चलते अपना लक्ष्य प्राप्त करने में चूक जाते हैं. ऐसे पहाड़ के बच्चे जो सेना का अफसर बनने का सपना तो देखते हैं लेकिन आर्थिक तंगी के चलते होनहार होने के बावजूद अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाते हैं. ऐसे बच्चों के लिए वह आवासीय स्कूल प्रारंभ करेंगे. जिससे उचित दिशा निर्देश से बच्चे भारतीय सेना में अफसर बन सके. यह गरीब बच्चे जब सेना में अफसर बनेंगे तो इन बच्चों में मुझे अपना चित्रेश नजर आएगा. मेरा एक चित्रेश गया है सैकड़ों चित्रेश बनाने की कोशिश करूंगा. में पुलिस सेवा से रिटायर्ड हो चुका हूं इसलिए अब मेरा यही लक्ष्य है
अपनी टीम के लिए बुल था मेरा भाई
शहीद मेजर चित्रेश के बड़े भाई मोनू, लंदन में प्रतिष्ठित कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. उनका कहना है कि सेना में अपनी टीम में चित्रेश को उनके साथी बुल कहते थे. क्योंकि चित्रेश हॉकी में जब अपने पास बॉल लेता था. तो किसी की हिम्मत नहीं थी कि उससे बॉल पास कर ले. चित्रेश की डिक्शनरी में 'नहीं' नाम का कोई शब्द था ही नहीं. जिस फील्ड में वो जाता था सफलता उसके कदम चूमती थी. बहुत बहादुर और निडर था मेरा भाई.
टीम मेंबर्स के लिए टाइगर था मेजर चित्रेश
शहीद मेजर चित्रेश के बचपन के दोस्त मेजर जितेंद्र रमोला बताते हैं कि चित्र को टीम मेंबर्स टाइगर कहते थे. क्योंकि आर्मी के किसी भी टास्क को कैसे बिना गलतियों के पूरा करना है यह हमने चित्रेश से सीखा है. स्कूल टाइम से ट्रेनिंग टाइम तक हर जगह चित्रेश का जलवा देखते थे. हर असंभव काम हम चित्रेश के हवाले कर देते थे. क्योंकि वह हमारा टाइगर था. मेजर जितेंद्र रमोला इन दिनों भारतीय सेना की ओर से यूनाइटेड नेशन मिशन के तहत साउथ सूडान में पोस्टेड हैं.
इंजीनियर्स से पहला जनरल आपका बेटा बनेगा पापा
शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट अपने पिता सुरेंद्र बिष्ट से कहा करते थे कि पापा इंजीनियर्स से पहला जनरल अगर कोई बनेगा तो वह आपका बेटा चित्रेश होगा. बहुत कम उम्र में कामयाबी को हासिल करना मेजर चित्रेश का जुनून था शायद इसीलिए वह हर काम बेहतर और पूरी ईमानदारी के साथ करना जानते थे. वह जानते थे पिता से क्या वादा कर रहे हैं. लेकिन शायद देश की रक्षा के लिए उन्होंने यह वादा तोड़ दिया.
मेजर चित्रेश को कम उम्र में मिला सेना मेडल
मेजर चित्रेश बिष्ट कितने होनहार थे, इसका पता इससे चलता है कि 22 आईडी सफलता पूर्वक डिफ्यूज करने के चलते उन्हें भारतीय सेना की ओर से सेना मेडल से भी नवाजा गया था. यह बहादुरी थी या देश के लिए मर मिटने का जुनून, कि जिस आईडी को डिफ्यूज करते हुए अक्सर उनके चेहरे पर हंसी रहती थी वहीं आईडी उनकी शहादत का कारण बन गई.
अफसर होकर भी जवानों के दिल के करीब था
शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट भारतीय सेना की 55 इंजीनियर रेजिमेंट में पोस्टेड थे. लेकिन अफसर होने के बावजूद वो अपने जवानों के काफी करीब रहते थे. केरल बाढ़ के दौरान मेजर चित्रेश आफिसर मेस में खाने के बजाय जवानों की कैंटीन में खाना खाते थे, मेजर चित्रेश का मानना था कि बचाव और राहत कार्यों में जवानों की हौसला अफजाई बेहद जरूरी है, इसलिए शायद मेजर चित्रेश अपने जवानों को अपने अफसर होने का अहसाह नहीं कराना चाहते थे. शहादत से पहले भी आईईडी डिफ्यूज करने के दौरान अपना बम डिस्पोशल सूट अपने साथी को पहना गये थे.
शहीद मेजर की वर्दी और तिरंगा
शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट की शहादत के बाद उनके कमरे में तिरंगे के ऊपर उनकी फौज की वर्दी देखकर हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं.
Source : सुरेंद्र डसिला