उत्तराखंड में भूस्खलन कोई नई बात नहीं है . अक्सर भूस्खलन की तस्वीरें पहाड़ों से देखने को मिलती हैं, लेकिन क्या कभी आपने ऐसा सुना या देखा है कि पूरा कोई एक गांव ही धंस रहा हो। जी हां आज हम आपको भारत चीन बॉर्डर के पास के एक गांव की ऐसी हकीकत दिखाने जा रहे हैं जिसे देखकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि आखिरकार ऐसा कैसे हो सकता है। पिथौरागढ़ जनपद में भारत चीन बॉर्डर के पास एक ऐसा गांव है जिसमें 50 से ज्यादा मकान एक ही तरह से धसने लगे हैं और पूरे गांव की जमीन धंसती हुई नजर आ रही है... आखिर क्या है यह मामला और कैसे किसी गांव की सैकड़ों एकड़ जमीन एक साथ धंस रही है। देखिए इस स्पेशल रिपोर्ट में.....
उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला क्षेत्र की दारमा वैली में स्थित दर गांव में तेजी से जमीन धंसने की जानकारी हमें मिली जिसके बाद हमने भारत चीन बॉर्डर के इस गांव का रुख किया। दर एक खूबसूरत गांव है। चारों और हरियाली ही हरियाली नजर आती है। धारचूला से कठिनाइयों को पार करते हुए संकरी सड़क से होते हुए हम दर गांव पहुंचे । देखने से यह गांव पूरी तरह सामान्य लगता है। लेकिन जब हमने एक गांव के स्थानीय लोगों के साथ गांव का मुआयना किया तो तस्वीर कुछ और ही बोल रही थी हम देख रहे थे कि गांव में नए पुराने सभी घरों में बड़ी-बड़ी दरारें नजर आ रही हैं। लेकिन फिर भी हमें यह सामान्य बात लग रही थी क्योंकि अक्सर गांव के पुराने मकानों में इस तरह की दरारें दिखती हैं लेकिन जब हमने गांव के मकानों को ध्यान से देखा तो यह देखा कि यह पीछे की ओर झुक रहे हैं घर की खिड़कियों से लेकर चौखट तक उखड़ने लगी है बुनियाद धंसती हुई नजर आ रही है।
गांव के घर सामने से तो बहुत सुंदर लग रहे हैं लेकिन जब घरों के पीछे पहुंचते हैं तो पता चलता है कि अंदर से घर पूरी तरह खोखले हो गए हैं घर का पीछे वाला हिस्सा पूरी तरह जमीन में बैठ चुका है। घरों का धंसने का तरीका एक ही है। स्थानीय लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि इस गांव के दर्जनों घर इसी तरह के हैं । 50 से ज्यादा घर पूरी तरह धस चुके हैं। पूरी जमीन चारों ओर धंस रही है। गांव के लोगों ने बताया कि इस क्षेत्र में भू वैज्ञानिकों ने पूरा सर्वे भी किया था और सरकार को बताया था कि इस गांव को विस्थापित करना जरूरी है क्योंकि भविष्य में यह पूरा गांव भूस्खलन और भू धसाव की चपेट में आ सकता है। 1976 के लगभग सरकार ने इस पर नीति बनाई और 1980 में करीब 50 परिवारों को यहां से विस्थापित किया गया।
दारमा वैली के इस दर गांव में पौने दो सौ परिवार रहते हैं । जो 1980 से विस्थापित होने की राह देख रहे हैं क्योंकि इन 42 सालों में गांव की जमीन बड़े पैमाने पर धंसने लगी है जिन लोगों ने नए मकान बनाए थे वह भी पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। गांव के रहने वाले इंदर सिंह दरियाल बताते हैं कि प्रशासन के अधिकारी कभी यहां सुध लेने तक नहीं आए विस्थापन तो बहुत दूर की बात है मानसून के सीजन में गांव के हालात देखने पटवारी तक नहीं आता. गांव के हर मकान को हमने बहुत ध्यान से देखा नए से लेकर पुराने मकान सब में एक तरह का पैटर्न है पूरी तरह से वह धंस रहे हैं बड़ी-बड़ी दरारें नजर आती है। बहुत मेहनत के साथ लोगों ने घर बनाए लेकिन अब उन में रहना मौत को दावत देना होगा क्योंकि घरों के भीतर नजर आ रहे हैं तो सिर्फ पत्थर और लकड़ियां।
दर गांव में घूमते हुए हमने कई सारे मकान देखें हमें लगा गांव वाले कुछ टूटे मकान दिखा कर भू धसाव की बात कर रहे हैं। लेकिन हम जिस भी मकान को देखते उसकी हालत एक जैसी ही है मकानों की स्थिति ऐसी है कि उस में रहना तो बहुत दूर की बात उसके पास खड़े होने में भी डर लग रहा है लेकिन गांव के लोगों के पास कोई साधन नहीं है वहीं टूटे मकानों में रहने के लिए भी मजबूर हैं. दरगांव के स्थानीय लक्ष्मण सिंह दरियाल बताते हैं किस गांव में आज तक प्रशासन का कोई अधिकारी नहीं आया पहली बार इनकी सुध लेने के लिए मीडिया इनके गांव पहुंचा है इनका कहना है कि बारिश के दौरान इन लोगों को सबसे ज्यादा डर लगता है क्योंकि परिवार में बुजुर्ग भी हैं महिलाएं भी हैं और छोटे बच्चे भी हैं लेकिन इनके विस्थापन की सरकार को कोई चिंता नहीं है
दर गांव में फसल काफी अच्छी होती है यहां अखरोट राजमा मक्का और कीवी की फसल प्रमुख तौर पर होती है गांव के लोगों का प्रमुख व्यवसाय केवल कृषि है ऐसे में सरकार से उनकी मांग है कि उन्हें दूसरी जगह विस्थापित किया जाए तो आजीविका के लिए खेती की जमीन भी दी जाए वरना उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है हालांकि गांव वालों का कहना है कि विस्थापन की बात तो बहुत दूर की बात अधिकारी तो मूलभूत सुविधाएं भी नहीं देते। गांव में महिलाओं की भी यही परेशानी है कि बच्चों के साथ ऐसे गांव में रहना जो तेजी के साथ धंस रहा है बड़ा मुश्किल है। महिलाओं का कहना है कि लोग मजबूर हैं इस गांव में रहने को क्योंकि प्रशासन कोई व्यवस्था नहीं करता।
धारचूला की दारमा वैली का दर गांव इतना बहुत आसान नहीं है। हाई एल्टीट्यूड क्षेत्र में कठिनाइयों भरा रास्ता है जिसमें दर्जनों लैंडस्लाइड जोन हैं गांव के आसपास की जमीन कई जगह भूस्खलन की चपेट में आ चुकी है गांव को आने वाली सड़क पर आने का मतलब मौत को दावत देना है इतनी परेशानियों के बावजूद प्रशासन इन गांव वालों को लेकर अभी तक गंभीर नहीं है।
Source : News Nation Bureau