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चमोली के जिस गांव में पड़ी प्रकृति की मार, वहां शुरू हुआ था 'चिपको आंदोलन'

रेणी गांव के गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ों को बचाने के लिए 'चिपको आंदोलन' (Chipko movement) शुरू हुआ था. इस आंदोलन में गांव की महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए उससे चिपक कर खड़ी हो गई थी.

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Vineeta Mandal
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'चिपको आंदोलन'( Photo Credit : गूगल फोटो)

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उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र के रेणी गांव में ग्लेशियर फटने (Chamoli glacier burst tragedy) से भारी तबाही का आलम है. उत्तराखंड के जिलों सहित उत्तर प्रदेश के भी कई राज्यों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है. पहाड़ों पर अचानक आए इस प्राकृतिक आपदा से यहां के लोगों समेत राज्य प्रशासन की परेशानी भी बढ़ गई है. पहले भी केदारनाथ (Kedarnath Tragedy) में भयंकर त्रासदी आ चुकी है, जिसे लोग अब तक नहीं भूल पाए है. चमोली में हुए इस भयंकर हादसे ने एक बार फिर कई सवालों को जन्म दे दिया है. प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने और हिमालयी क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप बढ़ने के कारण इस तरह के आपदा का खतरा और बढ़ गया है. 

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बता दें कि चमोली जिले के जिस गांव में ग्लेशियर टूटा है, उसका नाम इतिहास में दर्ज है. दरअसल, रेणी गांव में ही पर्यावरण सरंक्षण के लिए 'चिपको आंदोलन' की शुरुआत हुई थी. रेणी गांव के गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ों को बचाने के लिए 'चिपको आंदोलन' (Chipko movement) शुरू हुआ था. इस आंदोलन में गांव की महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए उससे चिपक कर खड़ी हो गई थी. इस आंदोलन ने पूरी दुनिया में अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी. 'चिपको आंदोलन' ने पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण का अनोखा और जरूरी संदेश दिया था.

चिपको आंदोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें  महिलाओं ने भारी संख्या में भाग लिया था. इस आंदोलन की शुरुवात 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी. चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था.

गौरतलब है कि चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र के रेणी गांव में रविवार को एक ग्लेशियर के फटने के बाद आई बाढ़ में लगभग 150 लोग लापता हो गए हैं या 'मृत' होने की आशंका जताई जा रही है. आईटीबीपी के जवान वहां बचाव और राहत कार्यों में लगे हुए हैं. स्थानीय प्रशासन से प्राप्त हालिया जानकारी का हवाला देते हुए, आईटीबीपी के प्रवक्ता विवेक पांडे ने बताया कि घटनास्थल से अब तक कम से कम 10 शव बरामद किए गए हैं, और कई लोगों को बचाया गया है, जबकि अन्य व्यक्तियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

घटनास्थल से प्राप्त अपनी प्रारंभिक जानकारी में, आईटीबीपी ने एक बयान के माध्यम से कहा था कि 'तपोवन एनटीपीसी कार्यस्थल के इंचार्ज के अनुसार, बैराज में 100 से अधिक मजदूरों और सुरंग में 50 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी है.. लगभग 150 लोग लापता हैं.'

इन सूचनाओं को स्पष्ट करते हुए, पांडे ने कहा, "चूंकि 150 लोग अभी भी लापता हैं, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि सभी की मौत हुई है या नहीं. उनकी मौत होने की संभावना है या वे लापता हो सकते हैं. लापता व्यक्तियों को सात साल तक मृत घोषित नहीं किया जा सकता है."

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आईटीबीपी ने कहा कि ऋषि गंगा में सुबह लगभग 10.45 बजे एक ग्लेशियर गिरने से जलस्तर में बढ़ोतरी हो गई और अचानक बाढ़ आ गया. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लापता होने वालों की संख्या 125 बताई है. साथ ही उन्होंने इस घटना में जानमाल के नुकसान पर दुख जताया और मृतकों के परिजनों को 4 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है.

ऋषिकेश और हरिद्वार में भले ही आपदा का असर महसूस न हो, लेकिन मंदिर नगरों को अलर्ट पर रखा गया है.ल एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि जिस जगह पर ग्लेशियर टूट कर गिरे, वहां बहुत ज्यादा मानव बसाव नहीं था, लेकिन कई बिजली परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं. राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य में स्थिति का जायजा लेने के लिए मुख्यमंत्री से बात की है.

Source : News Nation Bureau

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