उत्तराखंड में बाढ़ के कारण झील बनने के बाद ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों के जलस्तर में वृद्धि हुई है, जो चमोली जिले के लिए एक नया खतरा पैदा कर सकती है. एनटीपीसी के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार धौलीगंगा और ऋषिगंगा नदियों का नदी तट 7 फरवरी के जल-प्रलय के बाद विशेष रूप से तपोवन क्षेत्र में कुछ मीटर बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि बाढ़ के बाद हमने नदी के तल में काफी वृद्धि देखी है, जो हमारे लिए एक बड़ा मुद्दा है. नदी तल में वृद्धि के कारण क्षेत्र में लापता लोगों के लिए खोज अभियान में बाधा आ रही है. अधिकारी ने कहा कि नदी के आसपास के विशाल मलबे को हटाना और शवों की खोज करना बहुत मुश्किल हो गया है.
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जिला मजिस्ट्रेट स्वाति भदौरिया ने कहा कि वह केवल प्रामाणिक अध्ययन के बाद ही नदी के तल में वृद्धि के बारे में कह सकती हैं. उन्होंने कहा, "फिलहाल मैं नहीं कह सकती कि नदी का तल कितना बढ़ गया है." गौरतलब है कि 13.2 मेगावाट की ऋषिगंगा परियोजना को पूरी तरह से नष्ट करने और एनटीपीसी के तपोवन बांध को नुकसान पहुंचाने वाली ऋषिगंगा नदी में जलप्रलय के बाद लगभग 204 व्यक्ति लापता हो गए.
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इस बीच, वैज्ञानिक और अन्य एजेंसियां लगातार चमोली जिले में 14,000 फीट की ऊंचाई पर ऋषिगंगा झील पर बारीकी से नजर रख रही हैं. अशांत ऋषिगंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में बनने वाली झील से काफी प्रवाह के बावजूद राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) के जवान भी अलर्ट पर हैं.
विभिन्न एजेंसियों के शीर्ष वैज्ञानिकों की एक टीम भी झील के क्षेत्र में अवलोकन के लिए डेरा डाले हुए है. नौसेना के गोताखोरों ने क्षेत्र और इसकी गहराई का निरीक्षण करने के लिए एक सर्वेक्षण भी किया है. ऋषिगंगा झील के किनारे पैंग और अन्य क्षेत्रों में एसडीआरएफ के कर्मचारी भी ऋषिगंगा नदी के प्रवाह की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं. इसके अलावा, नदी के किनारे अलर्ट सेंसर भी लगाए गए हैं.
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एसडीआरएफ के अधिकारियों ने बताया कि झील 750 मीटर लंबी है और इसमें काफी पानी है जो ऋषिगंगा नदी के बहाव क्षेत्र के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है. गौरतलब है कि झील से भी काफी पानी डिस्चार्ज हो रहा है, जिसे राहत के तौर पर देखा जा रहा है. सरकार ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों को झील क्षेत्र में भेजा है जहां वे भावी कार्रवाई के लिए एक रिपोर्ट तैयार करेंगे.
Source : IANS