उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग स्थित 3,680 मीटर की ऊंचाई पर भगवान शिव को समर्पित सबसे ऊंचा मंदिर तुंगनाथ इसबार गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. पानी का रिसाव सहित मंदिर का धंसना और नींव कमजोर होना शुरू हो गया है. मानसून के मौसम से हालात और भी बदतर हो गये हैं. लगातार हो रही भारी बारिश ने नुकसान को और बढ़ा दिया है, जिससे प्राचीन मंदिर की स्थिरता और यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.
क्या है स्थानीय लोगों की मान्यता
स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर का निर्माण महाभारत के पांडवों ने कुरुक्षेत्र में युद्ध के बाद करवाया था. इसके
जवाब में, अजेंद्र अजय के नेतृत्व में बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से संपर्क किया ताकि संभावित जीर्णोद्धार के तरीकों का पता लगाया जा सके.
दोनों संगठनों ने सितंबर में साइट का निरीक्षण करने के लिए विशेषज्ञ दल भेजे थे. स्थिति का आकलन करने के बाद, उन्होंने मंदिर समिति को मंदिर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए कदम उठाने के बारे में अपनी सिफारिशें दीं.
अजय ने कहा, 'मंदिर में गंभीर समस्याएं हैं जैसे कि धंसना, नींव का कमजोर होना और दीवार की स्लेट का खिसकना, जिससे पानी का रिसाव होता है, खासकर बारिश के मौसम में ऐसी समस्या ज्यादा देखने को मिलती है.' समिति ने मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) से भी सहायता मांगी है.
मंदिर समिति और उत्तराखंड सरकार पर निर्भर
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एएसआई के अधीक्षक पुरातत्वविद् मनोज सक्सेना ने बताया, 'हालांकि, मंदिर आधिकारिक तौर पर एएसआई द्वारा संरक्षित नहीं है, लेकिन हमारी टीम ने साइट का दौरा किया और अपनी सिफारिशें दीं. अब यह मंदिर समिति और उत्तराखंड सरकार पर निर्भर है कि वे आवश्यक कार्रवाई करें.'
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने भी इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा, 'मंदिर में पानी के रिसाव और अन्य समस्याओं को देखते हुए, सरकार इसकी मरम्मत को प्राथमिकता दे रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संरचना सभी आगंतुकों के लिए सुरक्षित रहे.'