सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, सिविल और पुलिस सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारियों, राजदूतों और सशस्त्र बलों के वरिष्ठ अधिकारियों के एक मंच ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पश्चिम बंगाल में हालिया राजनीतिक हिंसा को लेकर एक पत्र लिखा है. बंगाल में 2 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद हिंसा भड़क उठी थी, जिसकी जांच की मांग करते हुए ज्ञापन या पत्र लिखा गया है. इस ज्ञापन पर 146 सेवानिवृत्त व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें 17 न्यायाधीश, 63 नौकरशाह, 10 राजदूत और 56 सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं.
पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि यह स्पष्ट है कि राजनीतिक हिंसा से होने वाली नागरिक मौतें राज्य के कानून व व्यवस्था प्रवर्तन तंत्र की गंभीर चूक के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए. राजनीतिक हिंसा लोकतांत्रिक मूल्यों का अभिशाप है. उन्होंने राष्ट्रपति के हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा को भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों की जड़ों पर प्रहार करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
ज्ञापन में हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने की मांग की गई है, ताकि निष्पक्ष जांच हो सके और तुरंत न्याय मिल सके. यह भी कहा गया है कि चूंकि पश्चिम बंगाल एक सीमावर्ती राज्य है इसलिए मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया जाना चाहिए, ताकि देश की संस्कृति और एकता पर देशविरोधी हमले की छानबीन हो सके.
ज्ञापन में राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए. सबसे पहले उन सरकारी कर्मचारियों की पहचान की जानी चाहिए, जो कोई भी कार्रवाई करने में विफल रहे. इसके बाद राजनीतिक रूप से उकसाने वालों की पहचान की जानी चाहिए. साथ ही हिंसा के मद्देनजर सभी अपराधों के संबंध में मामले दर्ज किए जाने चाहिए और अंत में वास्तविक अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए उनके खिलाफ प्रभावी ढंग से कार्रवाई की जानी चाहिए.
हिंसा के लिये भाजपा ने जहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार बताया है तो वहीं टीएमसी ने भाजपा पर हिंसक घटनाओं के राजनीतिकरण का आरोप लगाया है. राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर हिंसा होने की बात का खंडन किया है.
Source : IANS