जादवपुर विश्वविद्यालय का खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग पश्चिम बंगाल सरकार के साथ मिलकर ‘बांग्लार रोशोगुल्ला’ के भंडारण और उपयोग की अवधि बढ़ाने पर काम कर रहा है. दो साल पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिक्री के लिये बंगाल के रसगुल्ले को जीआई टैग मिला था. खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर ने रविवार को ‘पीटीआई’ को बताया कि अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) विभाग परिरक्षकों की किस्म पर काम कर रहा है ताकि बंगाल के स्वादिष्ट रसगुल्ले के भंडारण एवं उपयोग की अवधि को बढ़ाया जा सके.
प्रोफेसर ने बताया, ‘‘हमारा आर एंड डी विभाग एक निश्चित समय, छह महीने तक रसगुल्ला के भंडारण और उपयोग की अवधि बढ़ाने के तरीके सुझाने के लिये काम कर रहा है. लेकिन प्रक्रिया का प्रौद्योगिकी हस्तांतरण अब तक नहीं हो पाया है.’’ प्रोफेसर ने बताया, ‘‘राज्य सरकार का पशु संसाधन विकास विभाग यह बेहतर तरीके से बताने की स्थिति में होगा कि बाजार में कब और कैसे यह मिठाई उपलब्ध होगी.’’ उन्होने कहा कि मशीनों के इस्तेमाल से मिठाई का निर्माण किया जायेगा.
पश्चिम बंगाल के पशुपालन मंत्री स्वपन देबनाथ ने कहा कि एक बार प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी हो जाये तो जादवपुर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों द्वारा तैयार निर्दिष्ट मानदंडों के आधार पर राज्य एक संयंत्र में स्वचालित मशीनों की सहायता से रसगुल्ला निर्माण करेगा एवं ‘मदर डेयरी’ ब्रांड के तहत उत्पाद की बिक्री शुरू करेगा. इसके लिये कोई समयसीमा तय नहीं की गयी है. 14 नवंबर, 2017 को ‘बांग्लार रोशोगुल्ला’ को जीआई टैग दिया गया था.
बंगाल के रोसोगोल्ला की कहानी
बंगाल के केसी दास के वारिसों का दावा है कि रसगुल्ले (Rasgulla) का ईजाद नोबीन चंद्र दास ने 1868 में किया था. दावे के मुताबिक इसका ईजाद नोबीन दास के होनहार बेटे कृष्ण चंद्र दास ने किया. खैर बात फिलहाल रसगुल्ले (Rasgulla) की ही. नोबीन चंद्र दास (1845-1925) के पिता की मृत्यु उनके जन्म से तीन महीने पहले हो गई थी. उन्होंने उत्तरी कोलकाता के बागबाजार इलाके में 1866 में एक मिठाई की दुकान खोली. दुकान बहुत अच्छी नहीं चल रही थी. उस समय सोन्देश प्रमुख मिठाई थी लेकिन उन्होंने कुछ नया बनाने की ठानी और प्रयास शुरू कर दिए. दावे के मुताबिक 1868 में उन्होंने रोसोगोल्ला का अविष्कार किया.
ऐसे पापुलर हुआ रोसोगोल्ला
एक बार एक सेठ रायबहादुर भगवानदास बागला अपने परिवार के कहीं जा रहे थे. बग्गी में बैठे उनके एक बेटे को प्यास लगी. उन्होंने नोबीन दास की दुकान के पास बग्गी रुकवा ली. नोबीन ने बच्चे को पानी के साथ रोसोगोल्ला भी दिया जो उसे काफी अच्छा लगा. उसने अपने पिता से इसे खाने को कहा. सेठ को भी ये मिठाई बहुत पसंद आई और उसने अपने परिवार और दोस्तों के लिए इसे खरीद लिया. बस फिर तो ये मिठाई शहर भर में प्रसिद्ध हो गई. और आज पूरी दुनिया इसका नाम जानती है.
एक अनुमान के मुताबिक संभवत: रसगुल्ले (Rasgulla) के विधि ओडिशा (Odisha)से बंगाल पहुंची होगी, हालांकि यह मानने वालों की भी कमी नहीं कि ये विधि बंगाल से ओडिशा (Odisha)पहुंची होगी. अब इस बहस के बाहर देखें तो पूरे देश के लोग इस मिठाई को पसंद करते हैं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि रसगुल्ले (Rasgulla) का ओरिजन कहां का है.
क्या है जीआई टैग?
- किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को जियोग्रॉफिल इंडीकेशन टैग (जीआई टैग) से खास पहचान मिलती है. जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसके अलग पहचान का सबूत है.
- चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग चाय और मलिहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई मिल चुका है.
- भारत में दार्जिलिंग चाय को भी जीआई टैग मिला है. इसे सबसे पहले 2004 में जीआई टैग मिला था.
- महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर के ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू
- मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है.
- कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं.
(इनपुट भाषा से भी)
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो