बंगाल में रामनवमी पर हुई हिंसा को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने बंगाल सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि वह उन क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव कराने की अनुमति नहीं देगा जहां राम नवमी के दौरान सांप्रदायिक हिंसा हुई. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणम की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया है. बता दें कि 17 अप्रैल को रामनवमी जुलूस के दौरान बंगाल के मुर्शिदाबाद में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. जिसके बाद हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई थी. 23 अप्रैल को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह कहा कि यदि लोग शांति और सद्भाव से नहीं रह सकते हैं, तो यहां पर चुनाव आयोग मतदान नहीं कराए. इसी तरीके से हिंसा को रोकी जा सकती है. . आचार सहिंता लागू होने के बावजूद, अगर लोगों के दो समूह इस तरह लड़ रहे हैं तो वे किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधियों के लायक नहीं हैं.
सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव 7 मई और 13 मई को हैं, लेकिन चुनाव कराने की जरूरत नहीं है. क्योंकि नेता आपस में लड़ रहे हैं. ऐसे में चुनाव कराने का क्या लाभ होगा. कोर्ट ने आगे बताया कि राजधानी कोलकाता में भी 23 स्थान ऐसे हैं, जहां जश्न मनाया गया, लेकिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. यदि आचार सहिंता लागू होने पर ऐसा हो रहा है, तो राज्य पुलिस क्या हाथ पर हाथ धरे बैठी कैसे हैं. केंद्रीय बल क्या कर रहे हैं? दोनों झड़पों को रोक नहीं सके. इस पर राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि सीआईडी मामले की जांच कर रही है.
बहरामपुर संसदीय क्षेत्र में चुनाव टालने का प्रस्ताव
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने आगे कहा कि वह चुनाव आयोग के सामने बहरामपुर संसदीय क्षेत्र में होने वाले चुनाव को रोकने का प्रस्ताव रखेगा. हाई कोर्ट ने हिंसा की घटनाओं पर राज्य सरकार से हलफनामा भी मांगा है. मामले की सुनवाई 26 मई तक के लिए स्थगित कर दी गई.
17 अप्रैल को रामनवमी पर पश्चिम बंगाल में कुछ इलाकों में हिंसा भड़क गई थी. मुर्शिदाबाद, बहरामपुर समेत कई अन्य जगहों पर रामनवमी जुलूस के दौरान हिंसक झड़पों में कई लोग घायल हो गए थे. इसके लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग (ईसी) को जिम्मेदार ठहराया था.
Source : News Nation Bureau