सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनावी एजेंट के खिलाफ नंदीग्राम में हिंसा से संबंधित एक पुराने आपराधिक मामले को पुनर्जीवित करता है. न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एस. के. सूफियान को सुने बिना हाईकोर्ट की ओर से आदेश पारित किया गया है, इसलिए अदालत इस संबंध में अंतरिम आदेश पारित करना उचित समझती है. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनाव एजेंट सूफियान का नाम 2007 में नंदीग्राम हिंसा से संबंधित एफआईआर में शामिल था. हालांकि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 2020 में एफआईआर वापस ले ली गई. इस संबंध में कलकत्ता हाईकोर्ट के एक हालिया आदेश के बाद उसे पुनर्जीवित किया गया है.
2007 में नंदीग्राम हिंसा के सिलसिले में गैरकानूनी सभा के आरोपों और उनके खिलाफ हिंसा के मामले को पुनर्जीवित करने के खिलाफ सूफियान ने शीर्ष अदालत का रुख किया था. सूफियान का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को जनहित याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया था और आरोप लगाया कि हाईकोर्ट में एक भाजपा से जुड़े व्यक्ति द्वारा जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर आदेश पारित किया गया है.
सिंह ने कहा कि मामलों की बहाली ने उनके मुवक्किल को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत एक चुनाव एजेंट के रूप में कार्य करने से अक्षम कर दिया है. 2 जजों की बेंच के सामने विकास सिंह के अलावा पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और और सिद्धार्थ लूथरा भी पेश हुए. तीनों ने हाई कोर्ट के आदेश पर तत्काल रोक की मांग की. उन्होंने कहा कि 2020 की फरवरी और जून में आए निचली अदालत के फैसलों को जान बूझकर चुनाव से पहले उठाया गया. हाई कोर्ट ने सूपियान को सुने बिना केस दोबारा खोलने का आदेश दे दिया. जजों ने कहा, चूंकि इस मामले में अपीलकर्ता को सुने बिना हाई कोर्ट ने आदेश दिया. इसलिए, हम आदेश के अमल पर अंतरिम रोक लगा रहे हैं.
HIGHLIGHTS
- बंगाल चुनाव के सियासी संग्राम बीच टीएमसी को राहत
- ममता बनर्जी के चुनाव एजेंट एस के सूपियान को बड़ी राहत मिली
- सूपियान की गिरफ्तारी पर आज 2 हफ्ते की अंतरिम रोक लगा दी