Bad News: उत्तर प्रदेश के लाखों कर्मचारियों के लिए ये खबर बुरी हो सकती है. क्योंकि यूपी सरकार ने सभी कर्मचारियों को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने के लिए कहा गया था. लेकिन डेडलाइन बीतने के बाद भी ढाई लाख कर्मचारी ऐसे चिंहित किये गए. जिन्होने अभी तक भी अपनी संपत्ति का अपडेट सरकार को नहीं दिया है. ऐसे कर्मचारियों का फिलहाल वेतन रोक दिया गया है. यदि वे अब भी ब्योरा अपडेट नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई भी हो सकती है. आइये जानते हैं क्या है इसके पीछे सरकार उद्देश्य और क्या होगी कार्रवाई...
यह भी पढ़ें : सरकार के इस फैसले ने करोड़ों लोगों को किया खुश, हर माह खाते में जमा होगी 61000 रुपए की टैक्स फ्री पेंशन, नियमों में हुआ बदलाव
पोर्टल पर अपलोड की अपील
आपको बता दें कि राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों को अपनी चल और अचल संपत्ति का ब्यौरा ऑनलाइन संपदा पोर्टल पर अपलोड करने को कहा गया था. जिसकी डेडलाइन 31 तारीख तय की गई थी. जिन कर्मचारियों ने ब्यौरा अपलोड नहीं किया है. ऐसे सभी कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है. अन्य कर्मचारियों की भी लिस्ट बनाई जा रही है. जिन्होने ये काम नहीं किया है. ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी..
ये है वेतन रोकने का कारण
आपको बता दें कि पहले ही सरकार ने सभी कर्मचारियों को अपन चल-अचल संपति का ब्यौरा पोर्टल पर अपलोड करना था. लेकिन लगभग ढाई लाख कर्मचारी ऐसे चिंहित किये गए. जिन्होने डेडलाई तक अपना ब्यौरा अपलोड नहीं किया है. ऐसे सभी ढाई लाख कर्मचारियों का वेतन सरकार ने रोक दिया है. यूपी सरकार की विभिन्न विभागों की रिपोर्ट के आधार पर इन सभी कर्मचारियों का अगस्त का वेतन रोका गया है. साथ ही इनके प्रमोशन पर अडंगा लग सकता है. जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार के चीफ सेक्रेटरी ने सभी विभागों के प्रमुखों को पत्र लिखा है. पत्र में कहा गया है कि सभी सरकारी कर्मचारी 31 अगस्त तक चल-अचल संपत्ति घोषित करें नहीं तो उनका प्रमोशन नहीं होगा. लेकिन अभी तक भी लाखों कर्मचारी ऐसे हैं जिन्होने संपत्ति का ब्योरा अपलोड नहीं किया है.
क्या है सरकार का नियम?
विभागीय जानकारी के मुताबिक, सिर्फ 71 फीसदी कर्मचारियों ने ही अपनी चल और अचल संपत्ति की जानकारी अपलोड की है. आईएएस, आईपीएस, पीपीएस, पीसीएस अफसरों की तर्ज पर राज्य कर्मचारियों को भी ऑनलाइन संपत्तियों का ब्यौरा देना अनिवार्य किया गया है. हालांकि शिक्षकों, निगम कर्मचारी, स्वायत्तशासी संस्थाओं के कर्मचारियों को इसमें शामिल नहीं किया गया.