अंतर धार्मिक व अंतरजाति में शादी के मामलों में प्रॉपर कानून है, जिसके तहत आप भी शादी कर सकते हैं. हालांकि अंतरजातीय या अंतर धर्मीय शादी से जुड़े कानून देशों और उनके कानूनी प्रणालियों पर निर्भर करते हैं. भारत में भी इसके लिए कुछ विशेष विधियां हैं जो यहां उपयुक्त हैं. आज इस आर्टिकल में हम बहुत कुछ महत्वपूर्ण बिंदुएं इस बारे में बताने जा रहे हैं. यदि आप या आपके जानेमाने को इस विषय में संदेह है, तो स्थानीय न्यायिक एवं संबंधित धर्मिक गुरुकुल से सलाह लेना उचित हो सकता है.
स्थानीय विधायिका: अंतरजातीय या अंतरधर्मीय शादी को भारतीय समाज में स्थानीय विधायिकाओं ने स्वीकृति दी है. यह भारतीय संविधान में समानता के सिद्धांत के अनुसार है और व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार अपने जीवन संगी का चयन करने का अधिकार देता है.
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955: हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, अंतरजातीय या अंतरधर्मीय विवाह को स्वीकृति दी गई है. इसमें यह विवरणित किया गया है कि कोई भी हिन्दू व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी धर्म के व्यक्ति से विवाह कर सकता है.
स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954: भारत में अंतरजातीय विवाह को समर्थित करने के लिए विशेष मैरिज एक्ट, 1954 है. इसमें यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म या जाति के व्यक्ति से विवाह कर सकता है और इसमें कोई भी विवाद नहीं होगा.
धारा 377 और समलैंगिक संबंध: समलैंगिक संबंधों को भी भारत में स्वीकृति नहीं मिली है क्योंकि धारा 377 ने उन्हें अवैध घोषित किया है. हालांकि, समलैंगिक संबंधों पर समाज में बदलाव का सामर्थ्य बढ़ रहा है और न्यायिक प्रक्रिया में भी बदलाव हो रहा है.
धार्मिक अस्पष्टता: कुछ धार्मिक समुदायों में अंतरजातीय या अंतरधर्मीय विवाह के खिलाफ रूप में आपत्ति हो सकती है. इसका समाधान किसी भी धार्मिक आदर्शों के साथ संवाद करके किया जा सकता है.
Source : News Nation Bureau