बारिश और पाला से आलू की फसल पर खतरा, हो सकता है नुकसान; जानिए बचाव के उपाय

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई), शिमला के निदेशक डॉ. मनोज कुमार ने मीडिया से बातचीत में बताया कि बारिश की वजह से वातावरण में नमी बनी हुई है और आकाश में बादल छाये हुए हैं, साथ ही रूक-रूक कर हल्की बारिश हो रही है, जिससे तापमान 10-23 डिग्री सें

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Ravindra Singh
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आलू की फसल पर पाला का खतरा( Photo Credit : फाइल )

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उत्तर भारत में बारिश की वजह से वातावरण में आर्द्रता बढ़ने से आलू की फसल पर पिछेता झुलसा बीमारी का खतरा बना हुआ है. खासतौर से उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और मध्य क्षेत्र में आलू की फसल पर पिछेता झुलसा की आशंका बनी हुई है. उत्तर प्रदेश देश में आलू का सबसे बड़ा उत्पादक है और प्रदेश के किसानों ने इस साल आलू की खेती में खूब दिलचस्पी दिखाई है. राज्य में 6.20 लाख हेक्टेयर में आलू की बुवाई हो चुकी है और कुछ जगहों पर बुवाई चल ही रही है.

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई), शिमला के निदेशक डॉ. मनोज कुमार ने मीडिया से बातचीत में बताया कि बारिश की वजह से वातावरण में नमी बनी हुई है और आकाश में बादल छाये हुए हैं, साथ ही रूक-रूक कर हल्की बारिश हो रही है, जिससे तापमान 10-23 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच बना हुआ है. उन्होंने बताया कि मौसम के पूवार्नुमान के अनुसार ऐसी स्थिति अगले तीन-चार दिनों तक बने रहने की संभावना है, इस प्रकार मौसम की यह स्थिति आलू के फसल की पिछेता झुलसा बीमारी के लिए बेहद अनुकूल है.

डॉ. कुमार ने पश्चिमी-मध्य उत्तर प्रदेश में आलू की फसल को पिछेता झुलसा बीमारी के खतरों से बचाने के प्रभावी उपाय बताते हुए कहा कि आलू के खेत में पानी जमा नहीं होने दिया जाना चाहिए. उन्होंने कुछ अन्य उपाय भी बताए जो इस प्रकार हैं:

  • जिन किसान भाईयो की आलू की फसल में अभी पिछेता झुलसा बीमारी प्रकट नहीं हुई है, वे मेन्कोजेब या प्रोपीनेब या क्लोरोथेलोंनील युक्त फफूंदनाशक दवा का 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2.0-2.5 किग्रा दवा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टयेर तुरंत छिड़काव करें.
  • जिन खेतों में बीमारी आ चुकी उनमें किसी भी सिस्टमिक फफूंदनाशक साईमोक्सानिल मेन्कोजेब या फेनोमिडोन मेन्कोजेब या डाईमेथोमार्फ मेन्कोजेब का 0.3 प्रतिशत (3.0 किलोग्राम प्रति हैक्टयेर 1000 लीटर पानी में) की दर से छिड़काव करें. यदि बारिश की संभावना बनी हुई है और पत्ती गीली है तो फफूंदनाशक के साथ 0.1 प्रतिशत स्टीकर का भी प्रयोग करें.
  • फफूंदनाशक को दस दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है. लेकिन बीमारी की तीव्रता के आधार पर इस अंतराल को घटाया या बढाया जा सकता है. किसान भाइयों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा एक ही फफूंदनाशक का बार-बार छिड़काव न करें.
  • किसी भी परिस्थिति में खेत में बारिश के पानी का जमा ना होने दें.

उत्तर प्रदेश के उद्यान विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि किसानों ने इस साल आलू की खेती में खूब दिलचस्पी ली है जिससे आलू का रकबा 6.20 लाख हेक्टेयर हो चुका है जोकि पिछले साल के करीब छह लाख हेक्टेयर से 20,000 हेक्टेयर अधिक है. उन्होंने बताया कि बारिश ज्यादा होने पर आलू की अगैती फसल जो अब तैयार हो चुकी है और किसान खेतों से निकालने लगे हैं उसे बारिश की वजह से निकालने में कठिनाई आ सकती है.

बता दें कि पिछले साल आलू की स्टॉक का टोटा रहने की वजह से देशभर में आलू की कीमतें आसमान चढ़ गई थी. विशेषज्ञ बताते हैं कि अच्छे भाव मिलने की उम्मीदों से किसानों ने आलू की खेती में काफी दिलचस्पी दिखाई है.

Source : News Nation Bureau

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