court marriage in india: वैसे तो भारत संस्कृति का देश है. लोग पूरे रीति रिवाज से ही शादी करना पसंद करते हैं. लेकिन कुछ लव मैरिज ऐसी होती हैं. जिन्हें कोर्ट के अलावा कोई आसरा नहीं होता है. इसलिए सबके लिए ये जानना जरूरी है कि कोर्ट मैरिज करने के नियम व कानून क्या हैं. कई बार लोग कोर्ट तक चुनने में गलती कर देते हैं. जिला कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक सबके अलग-अलग नियम हैं. जिन्हें सबके लिए जानना जरूरी है. आइये जानते हैं यदि आपका कोई अपना कोर्ट मैरिज करने का प्लान कर रहा है तो वह सबसे पहले क्या करे?
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भारत में कोर्ट मैरिज
भारत में कोर्ट मैरिज का आयोजन एक अधिक तंत्रबद्ध प्रक्रिया है, जिसमें विवाहीत होने की मंजूरी के लिए न्यायिक स्थान का सही चयन करना महत्वपूर्ण है. यहां हम जानेंगे कि इस प्रक्रिया में सही तरीका और समय का महत्व क्या है. विवाह की अनुमति के लिए सही न्यायिक स्थान का चयन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, और जिला न्यायालय में विवादों के आधार पर न्यायिक स्थान का चयन करें. इसके बाद ये जानना जरूरी है कि विवाह प्रस्तावना देना आवश्यक है, जिसमें आपका नाम, पति या पत्नी का नाम, और विवाह की इच्छा शामिल होनी चाहिए.
आवेदन करें प्रस्तुत
न्यायिक स्थान के अनुसार आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन प्रस्तुत करें. इसमें प्रमुख है पहचान प्रमाणपत्र, पति-पत्नी का विवरण, और विवाह की इच्छा साबित करने वाले कागजात हो सकते हैं. आवेदन प्रस्तुत होने के बाद, नियमित न्यायिक सुनवाई होती है, जिसमें पति और पत्नी को समझाया जाता है कि उनका विवाह साहित्यिक और कानूनी दृष्टिकोण से सही है या नहीं. यदि न्यायिक स्थान को विवाहीत होने के लिए तत्परता मिलती है, तो उनका निर्णय दिया जाता है और विवाह पंजीकृत किया जाता है. आपको बता दें कि भारत में कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया संवेदनशीलता और सुरक्षा के साथ होती है और यह सुनिश्चित करती है कि विवाह लगभग किसी भी स्थिति में स्थायी और समझदारी से हो. क्योंकि एक छोटी सी भूल आपको परेशानी में डाल सकती है.
HIGHLIGHTS
- देश में 30 फीसदी लोग करते हैं कोर्ट मैरिज
- कई बार अधूरे ज्ञान की वजह से छूट जाती हैं बारीकियां
- कोर्ट का चयन करने में हो जाती है बड़ी भूल
Source : News Nation Bureau