भारत सरकार देश भर में इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन की व्यवस्था लागू करने की योजना बना रही है, जिसके बाद टोल प्लाजा और फास्टैग का काम खत्म हो जाएगा. योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा. इसके लिए सबसे पहले इसे कमर्शियल व्हीकल्स के लिए लागू किया जाएगा, जिसके बाद प्राइवेट कार वैन और जीप के लिए यह व्यवस्था धीरे-धीरे लाई जाएगी. इससे ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम का नाम दिया जा रहा है.
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प्लानिंग के हिसाब से अगले दो सालों तक इस ग्लोबल नेविगेशन सटेलाइट सिस्टम को लागू करने का विचार मंथन चल रहा है. सड़क परिवहन मंत्रालय के तहत काम करने वाली नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने इसके लिए ग्लोबल कंपनीज को इनविटेशन भी दिया है. इस व्यवस्था के फायदों की बात कर लेते हैं. नंबर एक इस नई व्यवस्था से लोगों को टोल प्लाज़ा पर लगने वाले जाम से छुटकारा मिल जाएगा. नंबर दो उपयोगकर्ता सफर की दूरी के हिसाब से टोल का भुगतान करेगा. इस तकनीक के अंतर्गत बैरियर फ्री इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन होगा, जिसमें व्हीकल के मूवमेंट को ट्रैक करके ये पता लगाया जाएगा कि उसने कितनी डिस्टेंस कवर की है.
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आइए ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम की कुछ तकनीकी बातों पर गौर कर लेते हैं. टोल की बात करें तो हर टोल प्लाज़ा में दो या उससे ज्यादा जीएनएसएस लेन्स होंगी, जिनमें अग्रिम रीडर्स होंगे. ये रीडर जीएनएसएस वाहनों की पहचान करेंगे और जीएनएसएस लेन में प्रवेश करने वाले गैर जीएनएसएस वाहनों से अतिरिक्त शुल्क लिया जाएगा. जीएनएसएस बेस्ड टोलिंग सिस्टम को पहले तीन महीनों में 2000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग पर लागू किया जाएगा. इसके बाद अगले नौ महीनों में इसे 10,000 किलोमीटर तक.
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वहीं 15 महीनों में 25,000 किलोमीटर टोल, राजमार्ग और 50,000 किलोमीटर तक से बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. ऑफिसियल स्टेटमेंट की बात करें तो कुछ दिनों पहले ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सेटेलाइट बेस्ड टोल सिस्टम का बैंगलोर, मैसूर और पानीपत में प्रयोग के बारे में सूचना दी थी. उन्होंने कहा था कि टोल प्लाज़ा पर लंबी कतार के कारण अक्सर लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. इसके लिए सेटेलाइट टोल सिस्टम की व्यवस्था लाई जाएगी. ऐसा माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक ही ये व्यवस्था देश में लागू हो जाएगी.