मंगलवार 5 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार द्वारा आम लोगों की भलाई के लिए निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने से जुड़ा हुआ है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को बहुमत से फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कह सकते हैं. कुछ खास संसाधनों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल सार्वजनिक हित में कर सकती है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ जजों की बेंच ने 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया.
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सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को किया खारिज
बेंच ने जस्टिस कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों को राज्य सरकारें अधिग्रहित कर सकती है. सीजीआई ने कहा कि पुराना फैसला विशेष आर्थिक समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था. हालांकि राज्य सरकारें उन संसाधनों पर दावा कर सकती हैं, जो भौतिक हैं और सार्वजनिक भलाई के लिए समुदाय द्वारा रखे जाते हैं. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चार तर्क भी दिए हैं. कौन-कौन से वह चार तर्क हैं, यह भी जान लेते हैं.
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प्राइवेट प्रोपर्टी को लेकर सरकार ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने बताया है 1960 और 70 के दशक में समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर झुकाव था, लेकिन 1990 के दशक से बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर ध्यान केंद्रित किया गया. भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा किसी विशेष प्रकार की अर्थव्यवस्था से अलग है, बल्कि इसका उद्देश्य विकासशील देश की उभरती चुनौतियों का सामना करना है. पिछले 30 सालों में गतिशील आर्थिक नीति अपनाने से भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह जस्टिस अय्यर के इस फिलॉसफी से सहमत नहीं है कि निजी व्यक्तियों की संपत्ति सहित हर संपत्ति को सामुदायिक संसाधन कहा जा सकता है. बेंच 16 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एस असोसिएशन यानी पीओएचएस हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट एमएच एडीए अधिनियम के अध्याय 8 एक का विरोध किया है.
9 सदस्यीय बेंज ने सुनाया बड़ा फैसला
1996 में जोड़ा गया यह अध्याय राज्य सरकार को जण सण इमारतों और उसकी जमीन को अधिग्रहित करने का अधिकार देता है. इस संशोधन को प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की ओर से चुनौती दी गई थी. आपको बता दें कि बेंच में सीजीआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नाग रत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे बी पादरी वाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल है. बेंच ने 6 महीने पहले तुषार मेहता सहित कई वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.