हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें इजरायल की युवतियां खुशी से झूमती और नाचती नजर आ रही हैं. इस वीडियो के जरिए इजरायल और इस्लामिक समाजों में महिलाओं की स्थिति की तुलना की जा रही है. इस वीडियो का मुख्य आकर्षण ईडन गोलन नाम की एक युवती है, जो अब इजरायल में महिला स्वतंत्रता और खुशहाली का प्रतीक बन गई है. वीडियो में इजरायल की युवतियां बिना किसी डर और दबाव के खुले में नाचती-गाती हुई दिखती हैं, जो कि उनकी स्वतंत्रता और खुशहाली का प्रमाण माना जा रहा है.
आखिर मुस्लिम महिलाओं से क्यों किया जा रहा है तुलना?
इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है, जहां इजरायल की महिलाओं की आजादी और इस्लामिक समाजों में महिलाओं की स्थिति की तुलना की जा रही है. इस्लामिक समाजों में महिलाओं को अक्सर बुर्के और अन्य धार्मिक परिधानों में देखा जाता है, जिसे कुछ लोग 'पोर्टेबल टेंट' के रूप में संदर्भित करते हैं. कई आलोचक यह तर्क देते हैं कि इस्लामिक समाज में महिलाओं के लिए खुशी और आजादी की कोई जगह नहीं है और उनके जीवन को दु:खद और सीमित बताया जाता है.
खुलकर जीने का प्रतीक बन गई है ईडन
ईडन गोलन, जो इस वीडियो का केंद्र बिंदु हैं, अब इजरायल में महिला स्वतंत्रता का प्रतीक बन चुकी हैं. इस वीडियो ने उन्हें रातों-रात सोशल मीडिया की सनसनी बना दिया है. लोग उन्हें एक ऐसी महिला के रूप में देख रहे हैं जो अपनी खुशी और आजादी को खुलकर जी रही है. वहीं दूसरी ओर, कुछ लोग इस वीडियो को एक तरह से इस्लामिक समाजों पर कटाक्ष के रूप में भी देख रहे हैं, जहां महिलाओं को पारंपरिक मान्यताओं और नियमों के तहत सीमित किया जाता है.
In Israel, girls are allowed to dance and be happy, unlike in Islam where happiness is haram and girls lead a miserable life in portable tents aka burqa.
— Imtiaz Mahmood (@ImtiazMadmood) May 11, 2024
Eden Golan has become the symbol of that happiness. pic.twitter.com/clXDSDVBds
इस वीडियो और इसकी प्रतिक्रियाओं ने एक बार फिर महिलाओं के अधिकारों और उनके सामाजिक स्थान को लेकर एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है. ईडन गोलन अब सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं, जो अपनी स्वतंत्रता और खुशी के लिए संघर्ष कर रही हैं. इस वीडियो ने दुनियाभर में यह संदेश फैलाया है कि महिलाओं को उनकी आजादी और खुशी का हक मिलना चाहिए, चाहे वह किसी भी समाज से क्यों न हों.