बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद हिंदुओं के हालात बेद से बदतर है.अल्पसंख्यकों और हिंदुओं को घर में घुसकर मारा जा रहा है. हिंदुओं को देश से निकाला जा रहा है. हिंदू लड़कियों के साथ बर्बरता की जा रही है. हिंदू समुदाय को पूरे बांग्लादेश में निशाना बनाया जा रहा है. उनके घर-दुकानें सब लूटी जा रही है. हालात इतने भयावह है कि अब हिंदू और अल्पसंख्यक बांग्लादेश छोड़ने को तैयार हैं. बड़ी संख्या में हिंदू समाज के लोग भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर आ गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेशी भारत में आकर शरण ले सकते हैं. क्या है रिफ्यूजी के लिए नियम और कितने समय तक रिफ्यूजी भारत में रह सकते हैं.
वैसे तो भारत में शरणार्थियों के लिए कोई कानून नहीं है. पूरे भारत में कोई भी कितने समय के लिए रह सकता है. अन्य देशों के लोगों के लिए भारत एक पनागाह के तौर पर है. लेकिन अगर कोई घुसपैठ करके यहां आना चाहता है तो उसके लिए सरकार एक्शन ले सकती है. साल 1951 में लीग ऑफ नेशन्स यानी यूनाइटेड नेशन्स ने शरर्णार्थियों के लिए एक नीति बनाई है.
शरणार्थियों के लिए ये है नियम
इस पॉलिसी को जेनेवा कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है. यह नीति कहती है कि शरणार्थी कौन हैं और शरण पाने वाले व्यक्तियों के अधिकार और शरण देने वाले देशों की ज़िम्मेदारियां तय की गई है. कन्वेंशन यह भी निर्धारित करता है कि कौन से लोग शरणार्थी के रूप में योग्य नहीं हैं. साल 1967 आते-आते ये पॉलिसी पूरी दुनिया या कहें तो कई देशों में लागू हो गई थी, लेकिन भारत इस पॉलिसी का हिस्सा नहीं है. इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में कभी शरणार्थी नहीं आए. पिछले काफी समय में तिब्बती, बांग्लादेश के चकमा और अफगानिस्तान, श्रीलंका के लोग भारत में शरण ले चुके हैं.
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भारत में कितने बांग्लादेशी शरणार्थी
1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े होने और बांग्लादेश बनने से पहले वहां खूब रक्तपात हुआ था. इस दौरान बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई थी. इसके बाद लाखों की संख्या में बांग्लादेशी शरण की तलाश में भारत पहुंचे थे. उस समय के बाद से ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत आ रहे हैं. 2004 में यूपीए सरकार ने बताया था कि भारत में करीब 12 लाख अवैध बांग्लादेशी प्रवासी रह रहे हैं, लेकिन 2016 में मोदी सरकार ने 20 लाख का आंकड़ा बताया था. जबकि 2018 में गृहमंत्री अमित शाह ने ये आंकड़ा 40 लाख के करीब बताया.