दक्षिण कोरिया में लम्पी त्वचा रोग का एक और केस सामने आया, अब तक 15 मामले की पुष्टि

दक्षिण कोरिया में मवेशियों में लम्पी त्वचा रोग का मामला सामने आया है. इस केस को जोड़कर कुल 15 मामले बढ़कर सामने आए हैं. 

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Mohit Saxena
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दक्षिण कोरिया में मवेशियों में लम्पी त्वचा रोग (एलएसडी) का एक और मामला सामने आया है. इससे इस वर्ष कुल मामलों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है. कृषि, खाद्य एवं ग्रामीण मामलों के मंत्रालय के अनुसार, नया मामला सियोज से लगभग 147 किलोमीटर दक्षिण में चुंगजू में एक मवेशी फार्म में हुआ.  मंत्रालय ने छह पड़ोसी क्षेत्रों में फार्म और संबंधित सुविधाओं से जुड़े कर्मियों और वाहनों के लिए 24  घंटे का ठहराव आदेश (स्टैंडस्टिल ऑर्डर) जारी किया है.

सरकार ने कहा कि बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए सभी उपलब्ध कीटाणुशोधन वाहनों को तैनात किया जाएगा. बीते सप्ताह कृषि मंत्रालय ने सियोल से लगभग 140 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में मुनक्योंग में एक मवेशी फार्म में एक मामले का पता लगाया था. एलएसडी एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी की तरह देखी जाती है. ये त्वचा के घाव, बुखार और भूख न लगने की वजह से बनती है. इसकी वजह से अक्सर मवेशियों में दूध का उत्पादन कम हो जाता है. मामला गंभीर होने पर मौत हो जाती है. 

खून पीने वाले कीड़ों की वजह से फैलता है

एलएसडी मवेशियों और भैंसों पर असर डालते हैं. ये मच्छरों और अन्य खून पीने वाले कीड़ों की वजह से फैलता है. कृषि मंत्रालय ने प्रां​तीय सरकारों से देशभर में अतिरिक्त मामलों के फैलने के खिलाफ सतर्क रहने और इस माह के अंत तक मवेशियों का टीकाकरण पूरा करने का आह्वान किया. देश में इस वर्ष अगस्त में मवेशियों में एलएसडी का पहला मामला सामने आया था. कृषि मंत्रालय के अनुसार, सियोल से 65 किलोमीटर दक्षिण में स्थित अनसियोंग के एक पशुधन फार्म में इस मामले की पुष्टि की गई. यहां पर 80 गायें रखी गई हैं. बीते साल नवंबर के बाद से दक्षिण कोरिया में एलएसडी का यह पहला मामला था. इस बीच, दक्षिण कोरिया के कृषि मंत्रालय ने हाल में कहा कि वह 2025  में एलएसडी के लिए एक जेनेटिक डायग्नोस्टिक किट का व्यवसायीकरण करने की योजना बना रहा है. 

यह जेनेटिक किट संक्रमित मवेशियों को पूरी तरह से नष्ट करने के बजाय चुनिंदा रूप से खत्म करने में सहायता करेगी. कृषि, खाद्य और ग्रामीण मामलों के मंत्रालय के अनुसार, मीडियन डायग्नोस्टिक्स के  साथ संयुक्त रूप से विकसित की गई यह तकनीक 8 घंटे के अंदर परिणाम देने में सक्षम है, जो बीते तरीकों की तुलना में काफी तेज है. 

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