Bangaladesh Political Crisis: बांग्लादेश में एक बार फिर से तख्तापलट हुआ तो शेख हसीना भारत की शरण में पहुंच गईं, अब उन्हें एक बार से भारत से मदद की उम्मीद है. ये कोई पहला मौका नहीं है जब शेख हसीना बांग्लादेश में तख्तापलट होने पर भारत पहुंची है. इससे पहले साल 1975 में भी शेख हसीना ने भारत में शरण ली थी. ये पहली बार था जब उन्हें पौने छह साल तक भारत में रहना पड़ा था. 49 साल बाद वह एक बार फिर से उसी उम्मीद के साथ भारत पहुंची हैं.
49 साल बाद बांग्लादेश ने दोहराया इतिहास
कहते हैं कि इतिहास कभी न कभी दोहराया जाता है, ऐसा ही बांग्लादेश में भी 49 साल बाद देखने को मिला है. दरअसल, 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद देश में पहली बार तख्ता पलट हुआ था और बांग्लादेश की सत्ता सेना के हाथ में चली गई थी. 49 साल पहले भी शेख हसीना भारत की शरण में पहुंची थीं. तब उनके साथ उनकी बहन भी भारत आई थीं. उसके बाद वह करीब पौने छह साल तक बांग्लादेश नहीं लौटीं. इस बार भी उन्हें उम्मीद है कि भारत उनकी मदद के लिए आगे आएगा. इतिहास के पन्नों में बांग्लादेश के तख्तापटल के कई किस्से मौजूद है.
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1981 में भारत से वापस गईं थी हसीना
शेख हसीना बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद 1975 में पहली बार भारत आईं. उसके बाद वह 18 मई 1981 को अपनी बेटी के साथ वापस बांग्लादेश पहुंचीं. उन्होंने इंडियन एयरलाइंस के विमान से कोलकाता से ढाका के लिए उड़ान भरी. ढाका पहुंचने पर अवामी लीग के नेताओं ने उनका जोरदार स्वागत किया था.
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जब 12 दिन बाद हुई थी जिया उर रहमान की हत्या
शेख हसीना के बांग्लादेश में वापसी के महज 12 दिनों बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जिया उर रहमान की हत्या कर दी गई. चटगांव में उनकी हत्या के बाद देश में एक बार फिर से दंगे भड़क गए और शेख हसीना को एक बार फिर से देश छोड़ना पड़ा. इस बार वह अगरतला बार्डर से 31 मई 1981 को भारत में प्रवेश कर रही थीं लेकिन बांग्लादेश राइफल्स ने उन्हें अगरतला सीमा से गिरफ्तार कर लिया. तब शेख हसीना हेलीकॉप्टर से त्रिपुरा की राजधानी अगरतला पहुंची थीं.
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शेख हसीना के लिए अशुभ रहा है अगस्त का महीना
शेख हसीना पांच बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं. वह 2009 से 2024 तक लगातार 15 साल तक पीएम पद पर रही. 5 अगस्त 2024 को उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. ये कोई पहली बार नहीं है जब शेख हसीना को अगस्त के महीने में इस तरह का झटका लगा हो. बल्कि पहले भी शेख हसीना के लिए अगस्त का महीना अशुभ साबित हुआ है. दरअसल, साल 1975 में अगस्त के महीने में ही उनके माता-पिता और तीन भाइयों की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद अगस्त 1989 में शेख हसीना पर भी जानलेवा हमला हुआ. तब 4-5 अगस्त को हुए प्रदर्शन के बाद देख में तख्तापलट हुआ और उन्हें देश छोड़ना पड़ा.
हमेशा छात्रों आंदलनों से घिरी रहीं शेख हसीना
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना अपनी राजनीति की शुरूआत से ही छात्र आंदोलनों से घिरी रही हैं. 11 अगस्त 1989 को हसीना पर दो ऑटो में सवार बंदूकधारियों ने हमला किया था, जिसमें वह बाल बाल बच गईं. तब ढाका के धानमंडी स्थित उनके घर पर 28 गोलियां चलाई गई थीं. इसके साथ ही दो हथगोले भी बरामद किए गए थे. ये हमला छात्र लीग के युवकों ने किया था. जब वह 1996 में पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं, तब भी उनका छात्र आंदोलनों से पीछा नहीं छूटा. यही नहीं साल 2024 में भी उन्हें छात्र आंदोलन की वजह से ही सत्ता छोड़नी पड़ी और देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.