पश्चिमी प्रभुत्व से मुक्त मल्टीपॉलर वर्ल्ड में ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने खुद को एक ऐसे मंच के रूप में स्थापित किया है, जो ग्लोबल साउथ के देशों की चिंताओं को प्रमुखता से उठा रहा है. पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए यह समूह बहुध्रुवीय विश्व यानि मल्टीपॉलर वर्ल्ड व्यवस्था की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है.
रूसी अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी स्पुतनिक द्वारा दिल्ली में आयोजित एक परिचर्चा में विशेषज्ञों और विचारकों ने ब्रिक्स की क्षमता और वैश्विक प्रभाव पर चर्चा की. भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने संयुक्त राष्ट्र की विफलताओं और पश्चिमी हस्तक्षेप की आलोचना की. उन्होंने कहा, "संयुक्त राष्ट्र पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों का शिकार हो गया है. ब्रिक्स वैश्विक शासन में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है."
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रूस और बहुध्रुवीयता का दृष्टिकोण
रूसी दार्शनिक और विचारक प्रोफेसर अलेक्जेंडर दुगिन ने बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन करते हुए कहा, "आज के युग में सिविलाइजेशन स्टेट अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया आधार बन गया है. हमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सभी पुराने सिद्धांतों पर पुनर्विचार करना होगा." उन्होंने पश्चिमी देशों की एकध्रुवीयता को समाप्त करने और सभ्यताओं को उनके स्वतंत्र आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का अवसर देने की बात कही.
भारत का आत्मनिर्भरता पर जोर
डॉ.अश्विनी महाजन, स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक, ने 'मेक इन इंडिया' पहल और तकनीकी आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा, "भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट है: सहयोग होना चाहिए, न कि प्रभुत्व."
वित्तीय स्वतंत्रता का मुद्दा
इस दौरान डॉलर के जरिए पश्चिमी प्रभुत्व और दबदबे को भी मंच से नकारा गया. प्रोफेसर एलेक्सी माजलोव, मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के एशियाई और अफ्रीकी अध्ययन संस्थान के निदेशक ने डॉलर के प्रभाव को कम करने और स्थानीय मुद्रा आधारित वित्तीय प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा, "डॉलर का उपयोग देशों को दबाने के लिए किया जाता है. हमें एक नई वित्तीय प्रणाली की जरूरत है."
पश्चिमी प्रभुत्व की चुनौती
चर्चा में यह बात उभरकर सामने आई कि पश्चिमी देश अपने घटते प्रभाव को देखते हुए वैश्विक दक्षिण के देशों को आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. युद्ध भड़काना और पर्यावरण जैसे मुद्दों का सहारा लेना उनके प्रमुख हथकंडे हैं और इसे दुनिया के सभी देशों को समझना होगा.
पश्चिमी नरेटिव के खिलाफ क्या चर्चा हुई?
इस दौरान अमेरिका सहित यूरोप और पश्चिम के देशों का नैरेटिव बिल्ड उप करना, प्रोपेगंडा फैलाना और अपने विचार को थोपने पर भी गंभीर चिंता जताई गई. विशेषज्ञों की एक राय थी की ब्रिक्स केवल एक आर्थिक समूह नहीं है; यह वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनकर उभरा है. यह समूह एक ऐसी दुनिया के निर्माण की दिशा में काम कर रहा है, जहां सहयोग हो, न कि प्रभुत्व. पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए ब्रिक्स ने बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव रखी है और आगे यह एम समावेशी हस्तक्षेप मुक्त विश्व के निर्माण में अहम भूमिका निभाएगा जहां सभी संस्कृतियों, भाषा और विकास का सामान अवसर मिले.