China strategy on Tibet: चीन, तिब्बत को हमेशा अपना हिस्सा बताता रहा है. इसे लेकर वह आए दिन अगल-अलग तर्क भी देता रहा है. इस बार चीन ने पुरातात्विक अध्यन को हथियार बनाकर तिब्बत पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश की है. दरअसल, चीन ने गुरुवार (4 सितंबर, 2024) को एक ऐतिहासिक घोषणा की. जिसमें ड्रैगन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) में समुद्र तल से 4,500 मीटर ऊपर किए गए एक पुरातात्विक अध्ययन में 300 से अधिक सांस्कृतिक अवशेष स्थलों की खोज को लेकर जानकारी दी. चीन की इस खोज में तिब्बत की ऐतिहासिक धरोहर को लेकर खुलासा किया गया है. हालांकि, इसके पीछे चीन के अपने राजनीतिक हित छिपे हुए हैं. जिनके जरिए चीन अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दावों से चाल चल रहा चीन
बता दें कि चीन लंबे समय से तिब्बत जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दावों को पुरातात्विक खोजों के जरिए मजबूत करता रहा है. चार सितंबर को चीन की ओर से की गई घोषणा भी उसी दिशा में एक और कदम माना जा रहा है. जिसमें चीन इन अवशेषों को तिब्बत और चीन के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंधों के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करता है. जिसका उद्देश्य तिब्बत पर नियंत्रण के अपने दावों को मजबूती प्रदान करना है.
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जानें क्या है चीन की पुरातात्विक रणनीति?
दरअसल, चीन की यह नई खोज उसकी पुरानी नीति का हिस्सा है, जिसमें वह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को अपने क्षेत्रीय और राजनीतिक उद्देश्यों के अनुरूप इस्तेमाल करता है. वहीं तिब्बत, अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के चलते, लंबे समय से विभाजनकारी चर्चा का केंद्र रहा है. चीन इन पुरातात्विक खोजों को इस तरह से प्रस्तुत करता है जो उसके ऐतिहासिक आख्यानों का समर्थन करें, वहीं तिब्बती की संस्कृति और इतिहास के अन्य पहलुओं को नजरअंदाज या कमतर आंका जाता है.
चीन की यह नीति न केवल घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तिब्बत की संप्रभुता के बारे में राय को प्रभावित करने की कोशिश करती है. यह रणनीति चीन के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है, जिसमें पुरातात्विक खोजों को महत्वपूर्ण मोड़ पर पेश किया जाता है, जिससे बड़े राजनीतिक लक्ष्यों के अनुरूप इन्हें प्रस्तुत किया जा सके.
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चीन का राजनीतिक मकसद और आलोचना
हालांकि चीन द्वारा तिब्बत में की गई इन खोजों का ऐतिहासिक महत्व अमूल्य है, लेकिन चीनी सरकार इनका उपयोग अपने राजनीतिक उद्देश्यों को समर्थन देने के लिए कर रही है. चीन की सरकार हमेशा यह दावा करती रही है कि तिब्बत हमेशा से चीन का अनिवार्य हिस्सा रहा है. यह कदम न केवल चीन के भीतर जनमत को प्रभावित करता है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत की स्थिति पर चीन की स्थिति को भी मजबूत करने की कोशिश करता है.
वहीं विदेशी आलोचकों का मानना है कि चीन इस तरह की खोजों को एक राजनीतिक चाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है. उनका कहना है कि तिब्बत के अतीत की जटिलता को पूरी तरह से समझने और सम्मान देने की जरूरत है. आलोचकों का कहना है कि पुरातत्व के माध्यम से राजनीति का सहारा लेना इतिहास और संस्कृति के मूल्यों को कम कर सकता है.
तिब्बत में चीन के द्वारा की गई सांस्कृतिक अवशेषों की खोज पुरातत्व के क्षेत्र में एक प्रभावशाली उपलब्धि है, हालांकि यह इस बात का भी संकेत देती है कि वैज्ञानिक खोजों का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है. इस खोज के व्यापक प्रभाव चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं. जो यह दर्शाते हैं कि इतिहास और संस्कृति का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कितनी बारीकी से किया जा सकता है.