Bangladesh: बांग्लादेश में तख्तापलट को लेकर भारत में भी दो पक्ष आमने सामने हैं. जो हुआ वह सही है या गलत इसका निर्णय करने से पहले बीते कुछ वर्षो में हुए कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को जानना जरूरी है. दरअसल बीते दो दशकों में तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ रहा बांग्लादेश भारत के दूसरे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के मुकाबले ग्रोथ और हैप्पीनेस दोनों हीं पैमाने पर बेहतर था. लेकिन अचानक शेख हसीना के तख्तापलट के बाद अब रेडिकलिज्म, अस्थिरता और अनिश्चितता के गर्त में ठीक वैसे ही समा गया है जैसे 1975 में फॉदर ऑफ नेशन मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद 1991 तक रहा था. अब बांग्लादेश का भविष्य वैसे ही दिखाई दे रहा है जैसे पाकिस्तान का कई बरसों से है.
(रिपोर्ट - मधुरेंद्र कुमार)
उठने लगे हैं ये सवाल
- क्या यह हिसंक विरोध शेख हसीना की तानाशाही के कारण हुआ?
- आरक्षण विवाद के कारण हुआ?
- घरेलू राजनीति में BNP और जमात के गठजोड़ से पैदा हुए रेडिकल इस्लामिक मूवमेंट के कारण हुआ?
- इसके साथ ही इस तख्तापलट में चीन , पाकिस्तान और अमेरिका की भूमिका पर भी तमाम सवाल हैं जिसपर चर्चा जरूरी है.
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पहले आरक्षण के मुद्दे से उठे सवाल का जवाब
सबसे पहले आरक्षण से उठे विवाद को समझते हैं. शेख हसीना ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले परिवार जनो को 30 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया था जिसे लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ. बढ़ते विरोध प्रदर्शन और हिंसा को देखते हुए आरक्षण के प्रस्ताव पर रोक लगा दी गई फिर भी हिंसा की आग नहीं थमी.
यानी हिंसा की आग भड़काने वाले तत्वों के लिए यह सिर्फ एक मुद्दा भर था. तख्ता पलट और बांग्लादेश को गृह युद्ध की आग में झोंकने वालों ने आरक्षण के मुद्दे का भरपूर इस्तेमाल किया लेकिन फैसले से सरकार के कदम खींचने के बाद भी हिंसा और षडयंत्र की आग में घी डालने का काम जारी रहा. मकसद था हसीना के खिलाफ जन विद्रोह को आगे बढ़ाना.
अगर आप बांग्लादेश से जुड़े रिपोर्ट्स को खंगाले तो आपको खालिदा जिया की पार्टी BNP और उससे जुड़े जमात ए इस्लामी के यूथ विंग का चेहरा विभिन्न रिपोर्ट्स में साफ साफ दिखाई देगा जो शेख हसीना को उखाड़ फेंकने के लिए रेडिकलिज़म का भरपूर इस्तेमाल कर रहे थे.
क्या था बीएनपी और आईएसआई का मकसद?
खालिदा जिया का बेटा तारीख रहमान जो मनी लॉन्ड्रिंग में दोषी पाए जाने के बाद यूके में रह रहा है उसने कई बैठकें सऊदी में ISI के साथ कीं और इस पूरे घटनाक्रम के दौरान आप रहमान के हैंडल और पाकिस्तान आर्मी से संचालित होने वाले हैंडल से परोसे जा रहे सोशल मीडिया कंटेंट को देखें तो इसमें भरपूर समानता दिखाई देती है. मकसद ISI और BNP का एक ही था, हसीना का तख्ता पलटो भले ही देश में आग लग जाए.
तख्तापलट में अमेरिका का क्या रोल?
अब BNP, जमात और ISI से निकलकर सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ आते हैं जिसमे बड़ी भूमिका सुपर पावर अमेरिका की दिखाई देती है. अमेरिका ने बांग्लादेश में एयरबेस के लिए जमीन मांगी लेकिन शेख हसीना ने इनकार कर दिया क्योंकि यह फैसला चीन को नाराज करता और अमेरिका की एंट्री से बांग्लादेश की हालत पाकिस्तान की तरह हो जाती.
इससे नाराज अमेरिका ने शेख हसीना को चुनाव के दौरान सबक सिखाने की ठानी. इसपर बिना नाम लिए हसीना ने चुनाव के दौरान व्हाइट मैन को लेकर जिक्र किया और बात पब्लिक डोमेन में आई. अमेरिकी और पाकिस्तानी प्रयासों के बावजूद हसीना चुनाव निकाल ले गईं और उनपर अलोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने के आरोप भी लगे क्योंकि विपक्ष के एक बड़े धड़े को सलाखों के पीछे कर दिया गया था.
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मसला सिर्फ चुनाव का भी नहीं थमा. अमेरिका बांग्लादेश के खिलाफ मुखर बना रहा. यह वही अमेरिका है जिसने पाकिस्तान में इमरान खान की चुनी हुई सरकार को गिराया, आर्मी की मदद से शाहबाज शरीफ की सरकार बनवाई और घोर अलोकतांत्रिक तरीके से जन समर्थन के बावजूद इमारन को सलाखों के पीछे रखकर पाकिस्तान में चुनाव कराया गया और फिर से प्रो अमेरिका शाहबाज शरीफ की सरकार बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है.
चुनाव और लोकतंत्र के सारे पैमाने पाकिस्तान में अमेरिका ने सेना की मदद से खंड खंड कर दिया लेकिन उसे पाकिस्तान में लोकतंत्र दिखाई देता है और बांग्लादेश में अपनी दाल नहीं गली तो बांग्लादेश को अलोकतांत्रिक करार देते हुए शेख हसीना को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
अब बात चीन की...
शेख हसीना ने अपने दो दशक के कार्यकाल में भारत और चीन के बीच बेहतर बैलेंस बनाकर रखा. लेकिन चीन को बांग्लादेश की जमीन पर BRI चाहिए, भारत के खिलाफ सैन्य जमावड़े में लिए बड़ा बसे चाहिए, नेवल एसेट के लिए और बड़े करार चाहिए। हसीना इसके लिए राजी नहीं थी, परिणाम ये हुआ की पिछले महीने दिल्ली दौरे के बाद जब वह बीजिंग गई तो जिनपिंग से तल्खियों के बीच उन्हें अपना दौरा कट शॉर्ट कर वापस लौटना पड़ा। यानी चीन को भी नाराज कर बैठी.
इस तरह हसीना एक तरफ घेरलू मोर्चे पर, दूसरी तरफ इस्लामिक रेडिकलिज़म के मोर्चे पर तो तीसरी तरफ विदेशी सुपर पावर के हितों को न साधने के क्रम में राजनीतिक रूप से शहीद हो चुकी हैं.
वह हसीना जो पिछले दो दशक में बांग्लादेश में अपनी नीतियों के जरिए तरक्की लेकर आई। पाकिस्तान की तुलना में रिसोर्स के घोर अभाव के बावजूद अपने आवाम के लिए ह्यूमन index के स्केल पर लगातार बढ़त बना रहीं थी। यूएन के रिपोर्ट के मुताबिक एक बड़ी आबादी को गरीबी और भुखमरी से आजाद कर चुकी थी, उसी मुल्क से जान बचाकर भागने को मजबूर हुई.
शेख हसीना ने दूसरी बार भारत में शरण लिया है। इससे पहले पिता मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद 24 Aug 1975 को एयर इंडिया की फ्लाइट से परिवार सहित दिल्ली के पालम हवाई अड्डे उतरी थी. उन्हें तब एक JS कैबिनेट ने रिसीव किया था और पहले उन्हें रॉ के 56, रिंग रोड स्थित सेफ हाउज ले जाया गया था. आज वह दिल्ली के समीप हिंडन हवाई अड्डे पर उतरी हैं और जीवन के शेष लम्हों को बिताने के लिए सकुशल स्थान की तलाश में जुटी हैं.