डॉ पीटर रैटक्लिफ के लिए जीवन तब पूर्णरूप से सफल हुआ, जब उन्हें साल 2019 में चिकत्सा क्षेत्र के नोबेल प्राइज के लिए संयुक्त रूप से सम्मानित किया गया. डॉ पीटर को चिकित्सा में विलियम केलिन जूनियर, सर पीटर रैटक्लिफ और ग्रीग सेमेनिया के साथ-साथ चिकित्सा क्षेत्र में सम्मानित किया गया. डॉ पीटर रैटक्लिफ ने विलियम कैलेन जूनियर, सर पीटर रैटक्लिफ और ग्रीग सेन्ज़ा के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में खोज की थी कि कैसे सेल्स ऑक्सीजन को जलाते हैं ताकि शरीर को ऊर्जा मिल सके और नई कोशिकाओं को बनने में मदद मिले. इनके इस अग्रणी शोध के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. हालांकि, इंटरनेट पर जारी एक 27 साल पुराने एक पत्र से पता चलता है कि कोशिकाओं पर उनके अध्ययन और ऑक्सीजन के लिए अनुकूलनशीलता के इस सिद्धांत को 1992 में एक विज्ञान पत्रिका द्वारा प्रकाशन के लिए रिजेक्ट कर दिया गया था.
5 अगस्त, 1992 के जारी किए गए पत्र में, नेचर विज्ञान पत्रिका के तत्कालीन एसोसिएट एडिटर डॉ रोरी हॉलेट ने रैटक्लिफ को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने दो समीक्षकों द्वारा उनके सिद्धांत पर टिप्पणियों के बाद उनके अध्ययन को न छापने के निर्णय की जानकारी दी थी. " पहले समीक्षक उनके द्वारा लिखित सिद्धांत में विसंगति निकालते हुए कहा था कि इस सिद्धांत को किसी ज्यादा विशिष्ट पत्रिका में विशेष तौर पर अंतरिक्ष की प्रतियोगिताओं के लिए जगह दी जाएगी.
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सोमवार को स्टॉकहोम में करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबेल समिति ने बताया कि तंत्र कोशिकाओं पर तीनों खोजों ने तंत्र कोशिकाओं में ऑक्सीजन के स्तर या हाइपोक्सिया में परिवर्तन का जवाब देने के लिए उपयोग करती हैं. इस खोज ने एनीमिया, कैंसर और कई अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए नई रणनीतियों की उम्मीद का मार्ग प्रशस्त किया है. नोबेल समिति ने समझाया कि ऑक्सीजन के महत्व को लंबे समय से स्थापित किया गया है, लेकिन कोशिकाएं अपने स्तरों में बदलाव के अनुकूल कैसे बनीं यह अभी तक नहीं मालूम हो पाया.
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लेकिन साल 1992 में नेचर पत्रिका के समीक्षकों ने बताया, वो हाइपोक्सिया के लिए आनुवंशिक प्रतिक्रिया के तंत्र को समझने में असमर्थ थे जिसे रेटक्लिफ ने प्रस्तावित किया था. इसी ने रेटक्लिफ को यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित किया था कि यह शोध प्रकाशन के लिए अयोग्य है क्योंकि यह रिसर्च उनके समझ से परे थी. इसलिए उन्होंने इस रिसर्च को पब्लिश करने से मना कर दिया था.
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आपको बता दें कि यह पहला मौका नहीं है कि जब एक नोबेल पुरस्कार विजेता के शोध को शुरुआत में खारिज कर दिया गया था. इसके पहले पीटर हिग्स के शोध को भी साल 1964 में जर्नल फिजिक्स लेटर्स द्वारा खारिज कर दिया गया था बाद में साल 2013 में उन्होंने नोबेल प्राइज जीता. इसी तरह साल 1977 में फिजियोलॉजी एंड मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले रोजलिन यलो के काम को द जर्नल ऑफ क्लिनिकल इन्वेस्टिगेशन ने खारिज कर दिया था. उनका शोध रेडियोमुनोनासैस पर था जिसमें शरीर में एंटीबॉडी स्तर का निर्धारण करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक सामान्य तकनीक पर था.