वैज्ञानिक अनुसंधान और अध्ययन से ज्यादा से ज्यादा सबूत मिले हैं कि कोरोनावायरस बहुत पहले मानव समुदाय में फैल रहा था. 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' की 1 दिसम्बर की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी रोग नियंत्रण केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा 30 नवम्बर को जारी शोध-परिणामसे पता चला कि गत वर्ष 13 से 16 दिसम्बर तक कैलिफोर्निया, ओरेगन और वाशिंगटन जैसे क्षेत्रों से प्राप्त रक्त के नमूनों में नए कोरोना वायरस की विशिष्ट एंटीबॉडी मिली थी. जाहिर है कि गत वर्ष दिसम्बर के मध्य में ही अमेरिका में लोग कोरोना वायरस से संक्रमित होने लगे थे.
15 नवम्बर को, इटली में मिलान ट्यूमर रिसर्च इंस्टीट्यूट और सिएना विश्वविद्यालय के विद्वानों ने 'टुमोरी जर्नल' में एक निबंध प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया कि सार्स-कोव-2 वायरस सितंबर 2019 में ही उत्तरी इटली में सामने आया था. इस वर्ष की गर्मियों में ब्राजील और स्पेन के विद्वानों ने भी पता लगाया कि साल 2019 में जलमार्ग में अपशिष्ट जल के नमूनों में कोरोनावायरस मौजूद था.
उपरोक्त उदाहरण देने का मकसद कोरोनावायरस के स्रोत साबित करना नहीं है, उद्देश्य है कि लोगों को बताना कि कोरोनावायरस के प्रति हमने नई वैज्ञानिक जानकारी हासिल की है. वह हमारे सोचने से पहले मानव समाज में फैल गया था. महामारी का सबसे पहला शिकार होने के रूप में चीन पर कुछ पश्चिमी मीडिया, खास कर चीन-विरोधी शक्तियों ने बेवजह आरोप लगाया और आक्रमण किया. चीन पर लगाए गए लोकमत वाले हमले का मकसद ज्यादा तौर पर वैचारिक पक्षपात और राजनीतिक इरादे के लिए है.
अब महामारी की नई लहर सामने आ रही है. कुछ देशों में दैनिक पुष्ट मामलों की संख्या में रिकॉर्ड बन रहा है. अमेरिकी जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय द्वारा जारी आंकडों के मुताबिक, 3 दिसंबर तक दुनिया भर में 6,44,47,657 कोविड-19 महामारी के मामलों की पुष्टि की गई, जबकि मृतकों की संख्या 14,91,559 है. इस वक्त, राजनीतिक और वैचारिक मतभेद छोड़ने का समय हो गया है. चाहे पूर्व हो या पश्चिम, चाहे पूंजीवाद हो या समाजवाद, चाहे गोरे लोग हों, पीले रंग के लोग या अश्वेत लोग ही क्यों न हों, हमें मतभेद और पक्षपात को छोड़कर महामारी के खिलाफ लड़ाई में समान कोशिश करनी चाहिए, ताकि मानव जाति के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके.
Source : IANS