नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर संसद अधिवेशन की बैठक से ठीक पहले सत्ताधारी नेपाल कम्यूनिष्ट पार्टी के दो गुटों के बीच पार्टी से निष्कासन और निलंबन का खेल शुरू हो गया है. पार्टी के अध्यक्ष प्रचण्ड ने बुधवार को अपने गुट की स्थाई समिति और केंद्रीय समिति की बैठक से प्रधानमंत्री केपी ओली को संसदीय दल के नेता से हटाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. जल्द ही पार्टी की संसदीय दल की बैठक बुलाकर ओली को औपचारिक रूप से संसदीय दल के नेता पद से हटा दिया जाएगा.
नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के पास कुल 172 सांसद हैं, जिसमें दोनों ही पक्ष अपने पास बहुमत होने का दावा कर रहा है. इस समय प्रचण्ड पक्ष यह दावा कर रहा है कि उसके पास संसदीय दल में बहुमत है और करीब 100 सांसदों का समर्थन भी हासिल है. वहीं, ओली पक्ष का दावा है कि उनके पक्ष में 90 से अधिक सांसदों का समर्थन है और यह संख्या 100 के पार होने की उम्मीद जताई गई है. ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में 90 सांसदों का हस्ताक्षर किया गया था.
ओली को संसदीय दल के नेता से हटाने के अलावा संसदीय दल के उपनेता सुवास नेम्बांग, प्रमुख सचेतक विशाल भट्टराई, सचेतक शांता चौधरी, ओली सरकार में मंत्री प्रभु साह सहित आधा दर्जन से अधिक नेताओं को पार्टी से 6 महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है
नेपाल सुप्रीम कोर्ट का PM ओली को बड़ा झटका, कहा- संसद को बहाल किया जाए
नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को बड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के फैसले को पलटते हुए संसद को बहाल किए जाने का निर्णय सुनाया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भी जारी किया है कि अगले 13 दिनों में नेपाल की संसद को बहाल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को बड़ा झटका लगा है. आपको बता दें कि इसके पहले पीएम के पी शर्मा ओली ने नेपाल सुप्रीम कोर्ट से संसद को भंग किए जाने की सिफारिश की थी. जिसके बाद नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने 20 दिसंबर 2020 को नेपाल की संसद को भंग कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल की संसद को भंग करना असंवैधानिक बताया और अगले 13 दिनों में ही संसद सत्र बुलाए जाने का आदेश दिया.
नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में चोलेंद्र शमशेर राणा की अगुआई वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षों को ध्यान से सुना और उनके द्वारा पेश किए गए सबूतों का ध्यान से अध्ययन करने के बाद ये फैसला सुनाया. इसके पहले इस मामले पर पिछले शुक्रवार को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. इस दौरान न्याय मित्र की ओर से पेश वकीलों ने कहा था कि सदन को भंग करने का प्रधानमंत्री ओली का फैसला संवैधानिक नहीं था. न्याय मित्र की ओर से पांच वरिष्ठ वकीलों ने अदालत में पक्ष रखा था.
सुनवाई के दौरान एक और वरिष्ठ वकील ने बताया कि नेपाल के संविधान में देश के प्रधानमंत्री को संसद को भंग करने का अधिकार नहीं है. यह एक संवैधानिक मामला है ना कि राजनीतिक, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए. आपको बता दें कि इसके पहले कार्यकारी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 20 दिसंबर को नेपाली संसद को भंग करने की सिफारिश को लेकर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास पहुंचे थे. इसके बाद राष्ट्रपति ने उसी दिन इसे मंजूरी दे दी और संसद को भंग कर दिया था, जिसके बाद से ही नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता है.
Source : News Nation Bureau