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चीन को साधने के लिए अमेरिका को फिर पड़ी 100 साल के बूढ़े हेनरी किसिंगर की जरूरत 

दुनिया के हर हिस्से में चीन और अमेरिका के बीच टकराव देखने को मिल रहा, ऐसे में तनाव को कम करने के लिए ये खास पहल की गई है.

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Mohit Saxena
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Henry Kissinger

Henry Kissinger ( Photo Credit : social media)

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हाल ही में अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की चीन यात्रा ने काफी सुर्खियां बटोरीं हैं. किसिंजर के साथ चीन के तमाम बड़े लीडर्स की मुलाकात हुई और चीन के प्रेजीडेंट शी जिनपिंग ने तो यहां तक कहा कि चीन अपने दोस्तों को कभी भूलता नहीं है. सवाल है कि आखिरकार 100 साल की उम्र में अपने स्वास्थ्य का खतरा मोल लेकर किसिंजर चीन क्यों गए और चीन ने क्यों बाहें फैलाकर उनका स्वागत किया. क्या किसंजर, अमेरिका और चीन के बीच लगातार बढ़ते टकराव को रोकने की आखिरी उम्मीद हैं ? क्योंकि जिस तरह से दुनिया के हर कोने में चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, उसके मद्देनजर इस बात की आशंका जताई जा रही है कि दोनों मुल्कों के बीच आज नहीं तो कल..जंग जरूर होगी.

दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक ताल्लुकात बेहद ठंडे हो गए थे

चीन के साथ बढ़ती राइवलरी की बीच अमेरिका एक ओर तो जहां उसे घेरने की रणनीति बना रहा है तो वहीं दूसरी ओर वो चीन के साथ इस तनाव को घटाने की कोशिशों में भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है. दरअसल, अमेरिका में चीन के जासूसी गुब्बारे के पकड़े जाने के बाद से ही दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक ताल्लुकात बेहद ठंडे हो गए थे. दोनों देशों के रिश्तो पर जमीं बर्फ को पिघलाने के लिए अमेरिका ने अपने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को चीन भेजा, रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन, वित्त मंत्री जेनेट येलेन और क्लाइमेट चेंज के मसले पर स्पेशल दूत जॉन कैरी को चीन भेजकर बातचीत करने की कोशिश की लेकिन इन सभी को चीन की ओर से ठंडा रिस्पांस मिला. यहां   तक कि अमेरिका रक्षा मंत्री की तो चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू से मुलाकात  तक नहीं हो सकी. यानी दोनों देशों के बीच मिलिट्री टू मिलिट्री कॉन्टैक्ट भी दोबारा से स्थापित नहीं हो सका.

चीन के ऐसे अड़ियल रवैये के बाद हैनरी किसिंजर चीन यात्रा पर पहुंचे जहां उन्होंने शी जिनपिंग के अलावा चीन के टॉप डिप्लोमैट वांग यी और रक्षा मंत्री   ली शांगफू से भी मुलाकात की. चीन ने हैनरी किसिंजर का दिल खोल कर स्वागत किया. जाहिर है, चीन अमेरिका को ये संदेश देना चाहता है के वो अमेरिका के साथ अपनें संबंधों को लेकर उसी शख्स के साथ बातचीत करेगा   जो चीन के लिए नरम रुख अपनाने के लिए जाने जाते हैं.

अमेरिका और चीन के रिश्तों की नई इबारत लिख दी थी

हालांकि अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट का कहना है कि हैनरी किसिंजर पर्सनल कैपेसिटी से चीन यात्रा पर गए थे और इस यात्रा का अमेरिकी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन ये बात पूरी तरह से हजम होने वाली नहीं है. दरअसल हैनरी किसिंजर को अमेरिका में चीन साथ सहानुभूति रखने वाले शख्स के तौर पर जाना जाता है. करीब 52 साल पहले भी हैनरी किसिंजर ने ऐसी ही एक चीन यात्रा की थी, जिसने अमेरिका और चीन के रिश्तों की नई इबारत लिख दी थी.
कोल़्ड वॉर के उस दौर में चीन तबके सोवियत संघ और के खेमे का देश हुआ करता था. सोवियत संघ उस वक्त अमेरिका का दुश्मन नंबर वन था. तब अमेरिका और चीन के बीच डिप्लोमेटिक रिश्ते तक नहीं थे. उस वक्त हैनरी किसंजर तब के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के नेशनल सिक्योरिटी एडवायजर यानी एनएसए हुआ करते थे. तब किसिंजर ने निक्सन को चीन के साथ दोस्ती बढ़ाने की सलाह दी और खुद एक सीक्रेट यात्रा पर चीन पहुंचे. 

चीन की इकॉनोमी ने कामयाबी की नई इबारत लिखी

चीन जाकर उन्होंने निक्सन की ऐतिहासिक चीन यात्रा की भूमिका तैयार करी. निक्सन की 1972 में हुई एक हफ्ते की चीन यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच ताल्लुकात बेहद गहरे हो गए. अमेरिका के सहयोग से चीन आर्थिक और सामरिक विकास की नई सीढ़ियों पर चढ़ता चला गया. चीन की इकॉनोमी ने कामयाबी  की नई इबारत लिख दी और चीन दुनिया की फैक्ट्री के तौर पर जाना जाने लगा. अमेरिका और चीन को करीब लाने में हैनरी किसिंजर का रोल बेहद अहम माना जाता है. चीन की इकॉनोमी अब बढ़ते-बढ़ते अमेरिका के बाद नंबर टू हो गई है और अब चीन अपनी मिलिट्री पावर को भी अमेरिका की टक्कर का बना रहा है. दुनिया के हर कोने में चीन अमेरिका को कड़ी टक्कर दे रहा है.

मिडिल ईस्ट को इलाका जहां कभी अमेरिका की तूती बोला करती थी वहां चीन ने ईरान और सऊदी अरब जैसे दो कट्टर दुश्मन देशों में समझौता करा दिया. अफगानिस्तान से अमेरिका के वापस लौटने के बाद अब चीन की नजरें उस मुल्क पर गढ़ी हैं. अफ्रीका महाद्वीप के कई देश चीन के कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं.

अमेरिका को चीन से सबसे बड़ा खतरा

अमेरिका को चीन से सबसे बड़ा खतरा तो एशिया-प्रशांत इलाके में महसूस हो रहा है. ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है और अमेरिका को आशंका है कि चीन कभी भी ताइवान को अपनी मिलिट्री पावर के जरिए हड़पने की कोशिश कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो ये अमेरिका के लिए सीधी चुनौती होगी क्योंकि अमेरिका ताइवान की सुरक्षा करने की बात कई बार कह चुका है.
चीन को घेरने के लिए अमेरिका ने जापान, ऑस्ट्रेलिया और बारत को मिलाकर क्वॉड गठबंधन बनाया है. हालांकि ये अभी तक एक मिलिट्री गठबंधन नहीं है लेकिन चीन इसे ठीक वैसे ही मानता है जैसे यूरोप में रूस के खिलाफ नाटो गठबंधन बनाया गया और जो अब यूक्रेन युद्ध में रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद कर रहा है.

यूक्रेन युद्ध में अमेरिका और उसके साथी देशों ने रूस पर कड़ी आर्थिक पाबंदियां लगाईं थी लेकिन चीन की मदद से रूस सने उनकी धज्जियां उड़ा दीं.अमेरिका ने रूस के डॉलर के इंटरनेशनल पेमेंट सिस्टम स्विफ्ट से बाहर करवाया तो रूस ने चीन की मुद्रा युआन में अपना कारोबार शुरू कर दिया.आज दुनिया के कई देश चीनी मुद्रा में भुगतान करके रूसी कच्चा तेल खरीद रहे हैं.

चीन अब डॉलर की मोनोपॉली को खत्म करने में लगा 

यहीं नहीं चीन अब अमेरिकी मुद्रा डॉलर की मोनोपॉली को खत्म करने के लिए Brics मुद्रा चलाने की कोशिश कर रहा है जिसमें रूस, भारत, चीन, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के अलावा कई और देश भी शामिल होना चाहते हैं. हालांकि भारत ने अभी तक चीन के इस प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं दी है.

अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे रहा चीन

यानी साफ है, चीन अब हर जगह अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे रहा है. प्रशांत महासागर के इलाके में तो कई बार अमेरिकी नेवी के जहाजों और चीनी जहाजों का आमना सामना भी हो जाता है.ऐसे में अमेरिका नहीं चाहता कि चीन के साथ टकराव उस हद कर बढ़ जाए जहां से पीछे लौटना मुमकिन ना हो. लिहाजा चीन से साथ रिश्तों को सुधारने की कमान अब 100 साल के बूढ़े उन्हीं हैनरी किसंजर को सौंपी है जिन्होंने आधी शताब्दी पहले अमेरिका और चीन को करीब लाने का कारनामा करके दिखाया था.

रिपोर्ट: (Sumit Kumar Dubey) 

 

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